अपने स्वार्थ दूसरों के मुंह का निवाला न छीनें

बाजीराव पेशवा मराठों के सेनापति थे। एक बार उन्होंने आक्रमण करके मालवा प्रदेश का बहुत-सा हिस्सा जीत लिया। अपने मुख्य शिविर की ओर लौटते हुए उनके पास खाद्यान्न समाप्त हो गया। उन्होंने अपने एक सरदार को कुछ सैनिकों के साथ आसपास के गांवों से अनाज लाने का हुक्म दिया।

सरदार अपने साथ कुछ सैनिक लेकर अनाज की तलाश में चल दिए लेकिन काफी देर तक उन्हें अनाज नहीं मिला, क्योंकि युद्ध के कारण आसपास के खेतों में भी विनाश हो गया था। तभी सरदार को एक किसान दिखाई दिया। सरदार ने उसे रौब के साथ कहा, ''हम बाजीराव के सैनिक हैं, हमें अनाज चाहिए, हमें तुरन्त कोई अच्छा-सा खेत दिखाओ।''

किसान इन सैनिकों को लेकर चल दिया। थोड़ी दूर जाने पर ही सैनिकों को एक अच्छी फसल वाला खेत दिखाई दिया। सरदार ने कहा, ''इसी खेत से फसल काट लेते हैं।''

तभी किसान बोला, ''आप मेरे साथ चलिए इससे भी अच्छा खेत थोड़ी दूर आगे है।''

थोड़ी दूर जाने पर किसान ने सैनिकों को कहा, ''इस खेत से चाहे जितनी फसल काट लो।''

यह खेत पहले खेत से कुछ घटिया था। सैनिक किसान पर भड़क उठे, ''हमें धोखा देता है। हमें यहां क्यों लाए?''

इस पर किसान बोला, ''यह खेत मेरा है। वह खेत दूसरे का था, दूसरों के खेत से फसल कटवाने का मुझे कोई अधिकार नहीं है। आप मेरे खेत से चाहें जितनी फसल काट लें।''

सैनिक किसान का मुंह देखते रह गए और उसके समक्ष नतमस्तक हो गए। यही किसान आगे चलकर महान विद्वान राम शास्त्री के नाम से विख्यात हुआ। 
 

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