कल जबलपुर आएंगे अमित शाह:अंग्रेजों ने शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ को तोप में बांधकर उड़ा दिया था

जबलपुर 18 सितंबर को राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान दिवस है। देश के गृहमंत्री अमित शाह और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह उन्हें श्रद्धांजलि देने आ रहे हैं। दोनों पार्टियों का मतलब भले ही सियासी हो, लेकिन पिता-पुत्र का बलिदान, उनके संघर्ष को कभी इतिहास में सम्मान नहीं मिला। कौन थे राजा शंकर शाह-कुंवर रघुनाथ शाह? आखिर अंग्रेजों ने उन्हें क्यों सरेआम तोप के मुंह पर बांध कर उड़ा दिया था? 

गोंडवंश पर कई शोध पुस्तकें प्रकाशित कर चुके इतिहासविद राजकुमार गुप्ता के मुताबिक गोंड राजवंशों का उत्थान काल 1292 से शुरू होता है। 1564 में रानी दुर्गावती के बलिदान तक गोंड राज्य स्वतंत्र और वैभवशाली बना रहा। इसके बाद गोंड राजाओं में सत्ता संघर्ष शुरू हुआ।

राजा सुमेर शाह की रानी ने 1789 में शंकर शाह को जन्म दिया। उस समय राजा सुमेर सिंह मराठों के बंदी होकर सागर के किले में कैद थे। रानी बेटे शंकर शाह के साथ राजधानी गढ़ा पुरवा में आकर रहने लगी थीं। शंकर शाह जंगल में बांस छीलकर नुकीले बाण तैयार करने लगे। उन्हें देख आसपास के गोंड बालक भी जुड़ गए। धनुषबाण से वे निशानेबाजी का अभ्यास करने लगे। थोड़े ही दिनों में उनकी एक मित्र मंडली तैयार हो गई, जिसे गोंटिया दल का नाम मिला।

वर्ष 1800 में युवराज पद पर अभिषेक

इस बीच मराठों ने सुमेर शाह को कैद से मुक्त कर दिया। वे भी परिवार के साथ पुरवा में रहने लगे। 1800 में पुरवा स्थित हवेली में 16 वर्ष की उम्र में शंकर शाह को युवराज बनाया गया। शंकर शाह गुरिल्ला युद्ध के जरिए मराठा सैनिकों पर हमले करने लगे।

पिता के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शंकर शाह राजा बने, हालांकि राज्य के नाम पर कुछ नहीं था। वह अपने गोंटिया दल के माध्यम से छापामार युद्ध जारी रखे हुए थे। 20 की उम्र में उनकी शादी युद्धकला में निपुण फूलकुंवरि से हुई। दो साल बाद कुंवर रघुनाथ शाह का जन्म हुआ। राजा शंकर शाह ने मराठों से अपना राज्य पाने के लिए पिंडारी सरदार अमीर खां से मदद मांगी, पर पिंडारियों ने दोहरी चाल चली। 12 हजार घुड़सवारों व 7 तोपों के साथ अमीर खां और 2000 पिंडारियों के साथ सरदार शाहमत खां ने जबलपुर पर हमला बोल कर लूटपाट और हर तरह के अत्याचार किए। देवस्थानों को भी नहीं छोड़ा। इस वादाखिलाफी से दुखी होकर राजा शंकर शाह ने अपने साथियों के साथ राज्य प्राप्त की योजना बनाई।

मराठों का शस्त्र भंडार लूट लिया

राजा शंकर शाह ने 1811 में अपने गोंटिया दल के साथ नागपुर से जबलपुर भेजी गई बंदूक व कारतूस बरगी के जंगल में हमला कर छीन लिया। 47 बंदूकें और कारतूस की 23 पेंटियां मिली। इससे राजा शंकर शाह की शक्ति बढ़ गई। दुर्भाग्य से 20 दिसंबर 1817 को अंग्रेजों ने भोंसले से जबलपुर को छीन लिया। शंकर शाह ने ब्रिगेडियर जनरल हार्डीमेन से मुलाकात कर राज्य पर अपना दावा पेश किया। अंग्रेजों ने मांग ठुकरा दी।

अंग्रेजों से शुरू हो गया सत्ता संघर्ष

अंग्रेजों द्वारा मांग ठुकरा देने के बाद राजा शंकर शाह का संघर्ष उनके साथ शुरू हो गया। 1818 के नववर्ष पर अंग्रेजों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम रखा। गोंटिया दल के युवा वनवासियों के लोकनृत्य व गीतों की प्रस्तुति देने पहुंचे। उस समय अंग्रेज प्रशासनिक परषिद के अध्यक्ष निकोल और तीन अन्य सदस्यों में मेजर मेनले, कैप्टन डिस्पार्ड व ले. हार्वे थे। रघुनाव राव इंगलिया को कार्यकारी गवर्नर बनाया गया था।

योजना के अनुसार, 24 वनवासी युवक-युवतियों ने मोहक आदिवासी नृत्य करते-करते सैनिकों की संगीनें व बंदूकें छीन कर अंग्रेजों और वहां मौजूद अतिथियों पर आक्रमण कर दिए। लगभग 20 सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। इस पर अंग्रेज सेना ने हमला कर दिया। 24 वनवासी युवक-युवतियों को गोलियों से भून दिया।

इस हमले के बाद 34 वर्षीय शंकर शाह ने बिना सामने आए अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया। 1857 आते-आते देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की ज्वाला भड़क चुकी थी। इसमें राजा शंकर शाह भी बेटे रघुनाथ शाह के साथ शामिल थे।

रानी लक्ष्मीबाई से ली सहायता

1857 में शंकरशाह ने बेटे के साथ मिलकर मुहर्रम के पहले दिन की शाम को अंग्रेज छावनी पर हमले की योजना बनाई थी। इसके लिए शंकरशाह ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से सहायता ली थी। रानी ने तंबरों में बंदूकें और मटकी में कारतूसें भरकर दी। मेरठ की छावनी की विद्रोह के बाद जबलपुर में अंग्रेजों की 52वीं पलटन भी विद्रोह की तैयारी में थी। योजना थी कि अंग्रेजों के तोपखाने पर कब्जा कर अंग्रेजी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया जाएगा।

अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर को भनक लग गई

अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ले. क्लार्क को इसकी भनक लग गई। ले. क्लार्क ने सेना के साथ रात के अंधेरे में ही चौहानी श्मशान में सो रहे दल पर आक्रमण कर दिया। सभी को गोली से भून डाला गया। फिर तेल डालकर जला दिया गया।

14 सितंबर की सुबह राजा शंकर शाह-बेटे कुंवर रघुनाथ शाह को गिरफ्तार कर लिया

इसके बाद अंग्रेजों ने राजा शंकरशाह की बखरी का घेरा डाल दिया। घर की तलाशी में कविता का संग्रह मिला। इसे अंग्रेजी शासन के खिलाफ विद्रोह बताते हुए राजा शंकर शाह, उनके बेटे कुंवर रघुनाथ शाह और उनके 13 विश्वस्त सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया। अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़काने का देशद्रोह साबित करते हुए तोप के मुंह में बांधकर उड़ा देने की सजा सुनाई गई।

18 सितंबर को तोप के मुंह में बांधकर उड़ा दिया गया

18 सितंबर को मौजूदा मालगोदाम में उन्हें तोप के मुंह पर बांधा गया। शंकर शाह ने बांधने वालों से कहा जरा जोर से बांधो, कहीं कसर न रह जाए। फिर मातृभूमि का जयकार करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। गिरफ्तारी के वक्त कुंवर रघुनाथ शाह ने निर्भय होकर जवाब दिया था कि हमारे देश में हमें ही गिरफ्तार करने का हुक्मनामा तुम्हारे बर्बर और जंगली होने का सबूत है। कौन कहता है, तुम लोग दुनिया की सबसे सभ्य कौम हो? पिता-पुत्र के बलिदान के बाद रानी फूलकुंवरि ने मोर्चा संभाला। बाद में अंग्रेजों से घिर जाने के बाद उन्होंने खुद ही कटार सीने में उतार ली। अंगरक्षक को आज्ञा दी कि उनका शरीर अंग्रेजों के हाथ न लगे। अंगरक्षक ने वहीं तेल डालकर शरीर को आग लगा दी।

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