कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रखने से सपा-बसपा-रालोद को यूपी में मिलेगा लाभ  

लखनऊ । उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन ने कांग्रेस को झिटका दिया जिसको लेकर कई तरह की शुभ-अशुभ चर्चाएं की जा रही थी। लेकिन इस फैसले से महागठबंधन को अब कोई मलाल नहीं हैं। दरअसल, यूपी में बीते 11 अप्रैल को पहले चरण के चुनाव के बाद अब गठबंधन (सपा-बसपा-रालोद) को लगने लगा है कि कांग्रेस को बाहर रखकर उन्होंने बेहतर फैसला किया है। गठबंधन को अब उम्मीद है कि वह भाजपा को स्थानीय मुद्दों पर लड़ाई के लिए मजबूर कर पाएगी और इसका फायदा उन्हें (गठबंधन) होना तय है। दरअसल, गठबंधन का मानना है कि कांग्रेस के अलग होने और क्षेत्रीय पार्टियों के साथ आने से भाजपा को स्थानीय मुद्दों पर चुनाव अभियान करने को मजबूर होना पड़ रहा है। गठबंधन का मानना है कि स्थानीय मुद्दों की जगह राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनावी संग्राम भाजपा को अधिक रास आता है। ऐसे में अगर कांग्रेस साथ में होती तो भाजपा उन्हीं राष्ट्रीय मुद्दों के जरिए पूरे गठबंधन को घेरने की कोशिश करती और इसका असर इसमें (गठबंधन) शामिल सभी पार्टियों पर पड़ता। लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से दूर रखने खासकर यूपी में बेहतर प्रदर्शन नहीं करने देने के लिए सपा-बसपा और आरएलडी संयुक्त रूप से चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस को भी दूर रखकर गठबंधन में शामिल पार्टियां 2019 में किंगमेकर की भूमिका को भी देख रही हैं। 
महागठबंधन की रणनीति यही है कि भाजपा को स्थानीय मुद्दों पर चुनाव में आने के लिए मजबूर किया जाए। उधर, भाजपा के स्टार प्रचारक और पीएम मोदी द्वारा लगातार गठबंधन पर हमले को भी वे अपने पक्ष में देख रहे हैं। गठबंधन का मानना है कि अगर कांग्रेस साथ होती तो चुनावी माहौल अलग होता। भाजपा गांधी परिवार को राष्ट्रीय मुद्दों पर घेरती और साथ में होने के कारण इसका खामियाजा क्षेत्रीय पार्टियों को भी उठाना पड़ता। गठबंधन का मानना है कि पाकिस्तान या ध्रुवीकरण जैसे मुद्दे यूपी में स्थानीय मुद्दों पर भारी नहीं पड़ेंगे। पश्चिमी यूपी में पहले और दूसरे चरण के चुनाव में गठबंधन खुद को मजबूत स्थिति में बता रहा है। हालांकि भाजपा 2014 के मोदी लहर में यहां सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी और पार्टी को उम्मीद है कि वह फिर इस प्रदर्शन को दोहराएगी। लोकसभा उपचुनावों मे भी सपा और बसपा के साथ ने भाजपा को टक्कर देते हुए उनके गढ़ (गोरखपुर और फूलपुर) में करारी मात दी थी। इसके बाद पश्चिम यूपी में जाट वोटों को आकर्षित करने के लिए रालोद का भी साथ ले लिया। ऐसे में जातीय समीकरण (यादव, मुस्लिम, दलित, जाट) के लिहाज से गठबंधन का मानना है कि उसके लिए बेहतर मौके हैं। 

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