गांधी जयंती: एक आदमी की सेना थे बापू, आज भी हैं लोगों के दिल में जीवित

महात्मा गांधी को पूरी दुनिया में लोग तरह-तरह के नामों से जानते हैं, वह महात्मा हैं, बापू हैं, युगपुरुष हैं, महामानव हैं, पथ प्रदर्शक हैं, मार्गदर्शक हैं और न जाने क्या-क्या पर इन सबसे अलग, हिंसा के अपार सैलाब को रोकने वाली एक आदमी की सेना भी हैं वह। 1947 का घटनाक्रम, भारत को आजादी मिलेगी यह तय हो चुका था। गांधी जी सशंकित थे- स्वाधीनता के आगमन के बाद यदि लोगों के दबे मनोभाव फूट पड़े तो स्वाधीनता को खतरा है, इस समय वह जनता के साथ रहने के लिए प्रतिबद्ध थे। बिहार, नौआखली, पंजाब सब ओर उनकी पुकार थी। केंद्र के अधिकारी इस आसन्न  खतरे से निपटने में लगे थे। निर्णय लिया गया था कि लगभग अफसरों और सैनिकों की एक सीमा कायम की जाए, उनमें ऐसे लोग हों जिनका बंटवारा न हुआ हो। किसी देश के एक क्षेत्र में शांति काल में कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए संगठित की गई सबसे बड़ी सेना थी- किसी अज्ञात खतरे का सामना करने के लिए।


गांधी जी कश्मीर से लौटते हुए, लाहौर से सीधे पटना के लिए निकल पड़े। वह कलकत्ता होकर नौआखली जाना चाहते थे। किसी ने उन्हें रोका नहीं, सब अच्छी तरह समझ गए कि विभाजन के बारे में तथा स्वाधीनता दिवस पर राजधानी के सरकारी समारोहों में उनका कोई स्थान नहीं होगा। लाहौर स्टेशन पर उन्होंने विदा करने आए कार्यकर्ताओं से कहा, ‘‘सच्ची परीक्षा जल्दी आ रही है, आपको शक्ति भर आत्म शुद्धि के लिए तैयार हो जाना चाहिए आपको घबराना नहीं चाहिए। जब आप भय से घबराते हैं तो आप मौत से पहले ही मर जाते हैं।’’ 


जब वह कश्मीर जाते हुए अमृतसर से गुजरे थे, तब कुछ लड़कों ने काले झंडे दिखाए थे, इस बार जब गाड़ी अमृतसर पहुंची तो गांधी जी के डिब्बे के सामने हजारों लोग व्यवस्थित ढंग से खड़े थे, उन्होंने पिछले प्रदर्शन के लिए माफी मांगी और कहा, ‘‘हमें ज्ञान नहीं था कि आप चार दिन की यात्रा में प्रांत का सारा वातावरण बदल देंगे।’’


8 अगस्त को गांधी जी पटना में थे। शाम की प्रार्थना सभा में उन्होंने लोगों  से कहा, ‘‘15 अगस्त का दिन आप प्रार्थना, उपवास और यज्ञ करके मनाइए।’’ 


प्रार्थना सभा से वह सीधे कलकत्ता जाने के लिए स्टेशन पहुंच गए। 10 अगस्त, पं. बंगाल के नवनिर्मित मंत्रिमंडल के मुख्यमंत्री डा. प्रफुल्ल चंद्र घोष व राज्यपाल सर फै्रड्रिक बरोज से उनकी भेंट हुई। अशांत कलकत्ता को शांत करने का अनुरोध लोगों ने गांधी जी से किया। गांधी जी ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं परंतु आपको फिर नौआखली की शांति की गारंटी देनी होगी।’’ 


लोगों ने इसे मान लिया। शाम को प्रार्थना सभा में गांधी जी ने कहा, ‘‘यदि साम्प्रदायिकता की दुष्ट भावना पुलिस में आ जाएगी तो देश का भविष्य सचमुच अंधकारमय हो जाएगा।’’ 


सुहरावर्दी कराची से कलकत्ता पहुंचे, सोदपुर आश्रम में वे गांधी जी से मिले। बापू ने कहा-अगर आप शांति कायम करना चाहते हैं तो मिल कर मेरे साथ काम करिए। शहीद सुहरावर्दी तीन माह पूर्व यह प्रस्ताव ठुकरा चुके थे। दूसरे दिन कलकत्ता के मेयर मोहम्मद उस्मान बापू के पास आए और बोले आपका प्रस्ताव बिना शर्त मंजूर है।


एक पुराने उजड़े मकान हैदरी मैंंशन को साफ करके इंतजाम किए गए। बारिश के कारण चारों तरफ कीचड़ का बोलबाला था। बापू जब वहां पहुंचे तो उत्तेजित नौजवानों की भीड़ सामने थी। वे गांधी लौट जाओ के नारे लगा रहे थे। गांधी जी अंदर चले गए। नौजवान खिड़की पर चढऩे लगे- हारेस एलैग्जैंडर ने खिड़कियां बंद करने की कोशिश की तो कांच पर पत्थर पडऩे लगे। गांधी जी से मिलने आए लोगों से उन्होंने कहा मैं यहां हिन्दू, मुसलमान और दूसरे सभी की सेवाओं में आया हूं जो गलत आचरण कर रहे हैं वे अपने धर्म पर कलंक लगा रहे हैं। मैं तो अपने को तुम्हारे संरक्षण में रखना चाहता हूं। मेरी जीवन यात्रा तो लगभग पूरी हुई, मुझे अब बहुत आगे नहीं जाना है परंतु अब तुम फिर से पागलपन करोगे तो मुझे नहीं पाओगे, नौआखली का शांति का भार सुहरावर्दी और मियां गुलाम सरवर और उनके दोस्तों के पास है।


गांधी जी के इन शब्दों का नौजवानों पर गहरा प्रभाव पड़ा। धीरे-धीरे गांधी जी का विरोध शांत होने लगा। 14 अगस्त को फिर नौजवान आए-गांधी जी से मिले-कलकत्ते भर में प्रत्येक कौम अपने पड़ोसियों को पुराने घरों में लौट आने का निमंत्रण देने लगी। इस बार नौजवानों का दिल गांधी जी ने पूरी तरह जीत लिया। रात को सभी ओर लोग एक-दूसरे से मिल रहे थे। गांधी जी के अनुरोध पर 15 अगस्त को अर्धरात्रि से उनके निवास स्थान पर सशस्त्र पहरा हटा लिया गया। हिन्दू-मुस्लिम स्वयंसेवक अब वहां पहरा दे रहे थे।


स्वाधीनता दिवस पर बापू अलसुबह 2 बजे उठ गए। प्रार्थना, उपवास और सम्पूर्ण गीता का पाठ करके यह दिन मनाया। प्रार्थना हो रही थी कि रवींद्र संगीत गाती बालाओं की टोली हैदरी मैंशन आ पहुंची। अपना संगीत बंद कर वे प्रार्थना में शामिल हुए। 


दूसरे दिन की प्रार्थना सभा में एक लाख लोग आए। शाम की प्रार्थना सभा मोहम्मडन स्पोर्टिग क्लब के मैदान में पांच लाख लोग आए। गांधी जी ने हाथ जोड़ सबको ईद की बधाई दी। गांधी जी ने लिखा ‘हमने पारस्परिक घृणा और द्वेष का जहर पिया है इसलिए भाईचारे का अमृत हमें और मीठा लग रहा है यह मिठास कभी कम नहीं होनी चाहिए।’


लार्ड माऊंटबेटन ने गांधी जी को लिखा पंजाब में हमारे पास 55000 सैनिक हैं पर शांति नहीं है बंगाल में हमारी सेना एक आदमी की है वहां कोई अशांति नहीं, एक अधिकारी और प्रशासक दोनों के रूप में मैं इस एक आदमी वाली सेना को अपनी अंजलि देना चाहता हूं।

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