गांव तक सड़क पहुंचाने को यहां हर शख्स बन गया ‘दशरथ मांझी’

मथुरा  इस गांव के लोग माउंटेनमैन दशरथ मांझी को नहीं जानते, लेकिन गांव की शहर से दूरी कम करने को यहां का हर शख्स दशरथ मांझी बन गया। जी हां, सिर्फ छेनी-हथौड़े की मदद से पहाड़ का सीना चीरकर रास्ता बनाने वाले दशरथ मांझी जैसा ही कारनामा कर दिखाया है जिले के दहगांव के लोगों ने।

 

दशरथ मांझी की तरह समस्याएं इनके रास्ते में भी थीं, लेकिन उन्होंने एक पुरानी कहानी से प्रेरणा लेकर अथक परिश्रम कर कुछ ही दिनों में 10 किमी लंबी सड़क बना डाली। यह कहानी अगस्त्य मुनि से जुड़ी है। अब गांव के लोग 16 किमी के स्थान पर सिर्फ छह किमी चलकर ही शहर पहुंच जाते हैं। 

 

यह है पूरा मामला 

 

संघर्ष की यह कहानी है हरियाणा की सीमा पर बसे मथुरा जिले के दहगांव की। राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोसीकलां से दिल्ली की ओर बढऩे पर पश्चिम की ओर एक कच्चा रास्ता जाता दिख जाएगा। यही वह रास्ता है, जो इस गांव के लोगों के संकल्प की कहानी है। करीब 12 हजार की आबादी वाले इस जाट बहुल गांव के लोगों को कोसीकलां आने के लिए 16 किलोमीटर का मार्ग तय करना पड़ता था। गांव के लोग कोटवन-उमराया मार्ग से कोसी पहुंचते थे। लंबा होने के साथ यह मार्ग बेहद जर्जर और थकाऊ था। इस मार्ग से कोसीकलां आने के लिए लोगों को कोटवन से उल्टी यात्रा शुरू करनी पड़ती थी। इस परेशानी से पूरा इलाका अपने ब्लॉक से कटकर हरियाणा के होडल पर अधिक निर्भर हो गया। 

 

प्रधान ने पहल की और निकल गया रास्ता 

 

शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था कोसीकलां में अधिक अच्छी है। ऐसे में गांव वाले लगातार छोटे वैकल्पिक मार्ग के बारे में सोचते। उनके पास एक ऐसा रास्ता था, मगर वह रास्ता डेढ़ किमी के बाद अतिक्रमण की भूख के चलते खेतों में समा गया था। कागजों में यह मार्ग लगभग 40 फुट चौड़ा था, लेकिन महज पगडंडी भर रह गया था। गांव के लोग प्रशासन और शासन के पास पहुंचे, प्रार्थना पत्र दिए, लेकिन अतिक्रमण हटाने से सभी ने इन्कार कर दिया। दहगांव वाले जानते थे कि अगर यह रास्ता खुल जाए, तो न केवल उनके समय की बचत होगी, बल्कि धन भी बचेगा। करीब दो साल पहले इस गांव ने ऐसा प्रधान चुना, जिसके पास न केवल संकल्प था, बल्कि ताकत भी थी। 

 

प्रधान कुंवरपाल उर्फ कुंपी अपने गांव के लोगों की समस्या पहले से ही जानते थे। वह खुद इससे पीडि़त थे। वह लोगों से बातचीत कर हल निकालने की तलाश में जुट गए, लेकिन शुरुआत कहां से की जाए यह समझ नहीं आ रहा था। ऐसे में गांव के ही धर्म भगत ने उन्हें हौसला दिया। सबसे पहले रासवन में एक छोटी बैठक बुलाई गई। संकल्प को हिम्मत मिली, तो गांव के लोग जुट आए। इस साल जून के पहले सप्ताह में कुंवरपाल गांव वालों को साथ लेकर अतिक्रमण से घिरे मार्ग को खोलने चल दिए। 

 

आसान नहीं था काम 

 

प्रधान कुंवरपाल बताते हैं कि इसके लिए उन्हें कड़ा संघर्ष करना पड़ा। रास्ते में छोटी बठैन, कोसी देहात और नवीपुर के किसानों की जमीन पड़ती थी। इन किसानों ने भारी विरोध किया। उनके खिलाफ रिपोर्ट तक दर्ज कराने के प्रयास किए, लेकिन गांव वालों के साथ के कारण उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। सरकार ने तो मनरेगा में भी काम कराने से इन्कार कर दिया।

हर अधिकारी से सहायता मांगी, लेकिन कोई भी धन देने को तैयार नहीं हुआ। ऐसे में जेब से पांच लाख रुपये खर्च कर जेसीबी चलाकर मिट्टी का मार्ग तैयार करा दिया गया। मात्र 24 दिन में तीस फुट चौड़ा छह किलोमीटर लंबा मार्ग बनकर तैयार हो गया। आज इसी मार्ग से होकर तीनों गांव के लोग गुजरते हैं। उनके लिए कोसी की दूरी 16 से घटकर सिर्फ छह किलोमीटर रह गई है। अब भी समस्या यह है कि सरकार इस मार्ग को पक्का करने की भी कोई पहल नहीं कर रही है। बरसात में इस पर चलना संभव नहीं है। 

 

जिला पंचायत से भेजा डामरीकरण का प्रस्ताव क्षेत्रीय विधायक और प्रदेश सरकार में मंत्री चौधरी लक्ष्मीनारायण ने बताया कि उनके संज्ञान में ग्रामीणों को यह काम आ चुका है। उन्होंने सड़क के डामरीकरण के लिए जिला पंचायत से प्रस्ताव राज्य और केंद्र सरकार को भिजवाया है। जल्द ही सड़क का डामरीकरण करा दिया जाएगा। 

 

पहले भी निकाल चुके थे एक मार्ग 

 

कुंवरपाल गांव के उन लोगों में शामिल हैं, जिनकी आवाज का असर है। आठ साल पहले जब वह प्रधान नहीं थे, तब भी गांव वालों की परेशानी को देखते हुए उन्होंने गांव से कोटवन तक का रास्ता तैयार किया था। दरअसल दहगांव और उसके आसपास का इलाका डूब क्षेत्र में आते हैं। बरसात के समय यहां के रास्ते डूब जाते हैं, जिससे लोगों के निकलने के लिए कोई मार्ग नहीं होता। ऐसे में गांव वालों ने धन इक_ा कर कोटवन तक चार किमी कच्चा रास्ता बनाया। यह आज भी कच्चा है, लेकिन ऊंचा होने से यह गांव वालों के लिए सुगम रास्ता बन गया है। 

 

कहानी काम आई 

 

जून से पहले जब दहगांव के लोग अतिक्रमण में दबे इस रास्ते को खोलने पहुंचे, तो उनके पास इसकी एक ऐतिहासिक कहानी थी। गांव के धर्मसिंह चौहान उर्फ भगत जी बताते हैं कि यह मार्ग गुडग़ांव लेन के नाम से जाना जाता था। प्राचीन समय में यह रास्ता पंजाब तक जाता था। कथा तो यह भी है कि इसी रास्ते से अगस्त्य मुनि दक्षिण की ओर गए थे। इस कथा पर गांव और आसपास के तमाम लोग भरोसा करते हैं। रास्ता खोलने के लिए गांव वालों को जोडऩे में यह कहानी भी काम आई। 

 

हरियाणा की सड़कों पर दौड़ लगाने जाते हैं युवा

 

सेना और पुलिस में भर्ती के लिए तैयारी करने वाले देहात के युवा पक्की सड़कों पर दौड़ते हैं, लेकिन कोसीकलां का यह इलाका इस मामले में बेहद पिछड़ा है। सड़कों की हालत यह है कि पैदल भी ठीक से चलना संभव नहीं है। ऐसे में गांव के युवा तैयारी के लिए पांच किमी दूर हरियाणा में जाकर वहां की सड़कों पर दौड़ लगाते हैं। प्रधान कहते हैं कि इस पर हरियाणा वालों के ताने भी सुनने को मिलते हैं। 

 

क्या कहते हैं ग्रामीण 

 

इस संबंध में एक ग्रामीण वेद कहते हैं- रास्ते के निर्माण से ग्रामीणों की परेशानियां कम हो गई हैं। कोसी की दूरी घटकर एक तिहाई रह गई है। यह सब ग्रामीणों के सहयोग से संभव हो सका है। इससे समय और धन बचा रहा है। गांव के ही जसवीर सिंह बताते हैं कि यह प्राचीन रास्ता था।

 

इसे गुडग़ांव लेन के नाम से जाना था। कई वर्ष से लोगों ने इसे तोड़कर खेतों में मिला लिया था। इस कच्चे रास्ते के बन जाने से हालात बदले हैं। ग्रामीण बालकिशन कहते हैं- यह रास्ता सरकार को बनवाना चाहिए था, लेकिन नहीं हो सका। अब ग्रामीणों ने इस मार्ग को कच्चा तैयार कर दिया है। सरकार अब इसे कम से कम पक्का करा दे, तो और सहूलियत हो जाएगी।

 

'माउंटेनमैन' को नहीं जानते दहगांव के लोग

 

'माउंटेनमैन' के नाम से मशहूर बिहार के गया जिले के दशरथ मांझी ने कठिन मेहनत से अकेले ही केवल छेनी-हथौड़े के बल पर 25 फुट ऊंचे पहाड़ को काटकर 360 फुट लंबे और 30 फुट चौड़े मार्ग का निर्माण कर दिया था। हालांकि इस काम में उन्हें 22 साल लग गए, लेकिन इससे गहलौर गांव की शहर से दूरी 55 किमी से घटकर केवल 15 किमी रह गई। उनके जैसे संकल्प के अनुगामी होने के बावजूद यहां के ग्रामीण माउंटेनमैन के नाम से भी अनिभिज्ञ हैं। 

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