गोवत्स द्वादशी : कथा के साथ जानें कैसे होगा छल, कपट व पापों का प्रायश्चित

गौ पृथ्वी का प्रतीक मानी जाती है तथा इन्हीं में तैंतीस कोटी देवी-देवता वास करते हैं। देव-दानवों द्वारा सागर-मंथन में नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला व बहुला नामक पांच गाय उत्पन्न हुई थी। इन्हीं पांच पवित्र गायों की पंच महर्षियों, जमदाग्नि, भारद्वाज, वशिष्ट, असित व गौतम ने देखभाल की। गायों के पंचगव्य गौवर्धन, गौमूत्र, दूध, दही व गौघृत में सभी देवो की शक्तियां समाहित हैं। गायों के पञ्च्गयव देवताओं को संतुष्ट करते हैं। कल सोमवार दिनांक 16.10.2017 को कार्तिक कृष्ण बारस के उपलक्ष्य में गोवत्स द्वादशी पर्व मनाया जाएगा। शास्त्रनुसार इस दिन गाय व बछड़े के पूजन का विधान है।


पौराणिक संदर्भ: धर्मराज युधिष्ठिर ने ग्लानि भरे मन से श्रीकृष्ण से पांडवों द्वारा महाभारत युद्ध में किए गए छल, कपट व पापों के प्रायश्चित का हल मांगा। जिस पर श्रीकृष्ण ने गौ और वत्स का महात्म समझाते हुए युधिष्ठिर को पाप मुक्त होने का मार्ग बताया। श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को गौवत्स द्वादशी का महात्म समझाते हुए राजा उत्तानपाद व रानी सुनीति की कथा सुनाई। 


गौवत्स द्वादशी कथा
उत्तानपाद की दूसरी पत्नी सुरुचि ने राजा के पुत्र ध्रुव को ईर्ष्या वश मारने के कई प्रयास किए परंतु वह असफल रही। ध्रुव बड़ा होकर पराक्रमी बना। इस पर सुरुचि ने सुनीति से ध्रुव के सुरक्षित बच जाने का कारण पूछा। सुनीति ने अपने गौ-वत्स की सेवा और अपने व्रत के बारे में व्यखान कहा। तब सुरुचि ने भी व्रत कर पुत्र रत्न प्राप्त किया। ध्रुव कालांतर में आकाश में चमकते ध्रुव तारे के रूप में प्रसिद्ध हुए। 


मान्यतानुसार इसी दिन श्रीकृष्ण जन्म के उपरांत यशोदा ने इसी दिन गौ दर्शन व पूजन किया था। इसी दिन पहली बार श्रीकृष्ण वन में गाय-बछड़े चराने गए थे तथा यशोदा ने गोपाल का श्रृंगार करके उन्हें गोचारण हेतु भेजा था। गौ के कारण ही कृष्ण का नाम गोपाल पड़ा। गौ की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने गोकुल में अवतार लिया।

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