चैत्र नवरात्र अष्टमी पर विशेष-शक्ति से भरपूर हैं शक्तिपीठ

जिस प्रकार शिव के द्वादश ज्योर्तिलिंग विशेष महत्व रखते हैं, ठीक उसी प्रकार देवी के शक्ति पीठ भी धार्मिक सद्भाव का आधार हैं। ये शक्तिपीठ आध्यात्मिक के साथ ही बौद्धिक और दार्शनिक महत्व भी रखते हैं। इन शक्तिपीठों का निर्माण बुद्घ के स्तूपों की तर्ज पर किया गया। जिस प्रकार स्तूपों में बुद्घ के अवशेष रखे गए हैं, उसी प्रकार शक्तिपीठों में माता सती के काल्पनिक अवशेष रखे हैं।
शक्तिपीठों के निर्माण की कथा के अनुसार जब सती के पिता दक्ष ने यज्ञ में शिव को नहीं बुलाया और अपने पति की आज्ञा के बिना सती चली आईं। सती अग्नि में समा गई तो कुपित शिव ने दक्ष का यज्ञ विध्वंस कर दिया। सती को अग्नि से निकालकर शिव ने उन्हें अपने कंधे पर उठा लिया। विष्णु ने सुदर्शन चक्र चलाकर उनके अंग काट डाले। जिससे शिव का मोह भंग हो और जगत का कल्याण हो।  जहां-जहां सती के अंग गिरे कालान्तर में वहीं-वहीं शक्तिपीठों का निर्माण किया गया।
वर्तमान में लगभग 50 से अधिक शक्तिपीठ हैं। जिनमें से 12-15 ही विशेष महत्व रखते हैं। अन्य पीठों में तीज-त्यैहार पर ही चहल-पहल होती है। मध्यप्रदेश में मैहर की शारदा तथा डोंगरगढ़ की बम्हलेश्वरी माता ऐसी शक्तिपीठ हैं, जिनमें पूरे वर्ष भर पूजा-पाठ होता है और दर्शनाथियों की भीड़ लगी रहती है।
प्रसिद्ध देवी पीठ
शक्ति के अंग या आभूषण शक्तिपीठ के आवश्यक अंग हैं। विशेष महत्व रखने वाले 12 शक्ति पीठों के नाम, शक्ति और भैरव का उल्लेख तंत्रविद्या के प्रमुख ग्रंथ त्रिपुरा रहस्य में किया गया है-
–    विंध्येश्वरी- वाराणसी के पास स्थित इस शक्तिपीठ के संबंध में मान्यता है कि महिषासुर का वध करने के बाद भगवती दुर्गा ने यहां कुछ देर विश्राम किया था। भगवती केs अष्टाभुज स्वरूप का दर्शन और पूजन करने से मनोकामना पूरी होने के कई प्रसंग श्रद्घालुओं की जबान पर हैं।
–    अंबाजी- यहां प्रतिमा के स्थान पर श्री यंत्र की पूजा होती है। इसकी शक्ति अंबिका, आभूषण हृदय और भैरव अमृत है। स्थान है आरासुर आबूरोड (गुजरात)।
–    हरसिद्घि- शक्ति अवंती, आभूषण होंठ, भैरव लंबकर्ण। स्थान उज्जैन (मध्यप्रदेश)।
–    ललिता- शक्ति ललिता, आभूषण बांई जंघा, भैरव भव, स्थान इलाहाबाद (उप्ऱ)।
–    कालीपीठ- इसका आभूषण दाएं पैर की अंगुली है। यह कालिका के नाम से भी विख्यात हैं। भैरव है नकुलीश। स्थान-कालीघाट (पश्चिम बंगाल)।
–    मणिकर्णिका- इसकी शक्ति विशालाक्षी और आभूषण कर्णकुंडल हैं। भैरव है काल और स्थान- वाराणासी (उप्ऱ)।
–    भद्रकाली- पीठ, सरवाणी, निमिष। स्थान कन्याकुमारी (तमिलनाडू)।
–    श्रीशैलम- आभूषण दांया टखना। श्रीसुंदरी, सुंदरानंद। स्थान- श्रीपर्वतकरनूल (आंध्रप्रदेश)।
–    जनस्थान- शक्ति देवी भ्रामरी। आभूषण-ठोड़ी। भैरव-विकृताक्ष। तीर्थ नासिक (महाराष्ट)^।
–    सिद्घ अंबिका- शक्ति देवी सिद्घिदा, आभूषण-जीभ। शिव का स्वरूप। स्थान-ज्वालामुखी कांगड़ा (हिमाचलप्रदेश)।
–    कामाख्या- गुफा में स्थित इस शक्तिपीठ के पूजास्थल पर एक कुंड है। यह शक्ति कामाख्या के नाम से ही विख्यात है। इसका आभूषण योनि और भैरव उन्माद है। स्थान गुवाहाटी (असम) के पास कामाख्या।
–    कांची- शक्ति देवगर्भा, कामकोटि, आभूषण अस्थि। भैरव रूरू। स्थान-कांची कामकोटि (तमिलनाडू)।

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