जब द्रौपदी ने की छठ पूजा तो वापस मिला जुए में हारा हुआ राजपाट

छठ पूजा में सूर्य की उपासना की जाती है। यह पूजा महाभारत काल से जुड़ी मानी जाती है। मान्‍यता है क‍ि एक बार जब कौरवों और पांडवों के बीच जुआ खेला गया था उसमें पांडवों ने अपना पूरा राजपाट खो द‍िया। इसके बाद उन्‍हें वनवास भोगना पड़ा। वनवास में भटकतते समय पांडवों को अनेक कष्‍टों का सामना करना पड़ रहा था। ऐसे में इन कष्‍टों से मुक्‍त‍ि व अपना राजपाट वापस पाने के ल‍िए द्रौपदी यानी क‍ि पांचाली ने धौम्य ऋषि की सलाह पर छठ व्रत किया था। द्रौपदी ने व‍िध‍िव‍त अनुष्‍ठान कर पूजा-अर्चना की थी। ऐसे में इस पूजा से द्रौपदी और पांडवों को उनका खोया हुआ राजपाट वापस म‍िल गया था।  

 

वहीं छठ पूजा का सूर्य पुत्र कर्ण से भी संबंध माना जाता है। मान्‍यता है क‍ि सबसे पहले कर्ण ने ही अपने प‍िता सूर्य देव की पूजा शुरू और उन्‍हें अर्घ्‍य देना शुरू क‍िया था। कर्ण भगवान सूर्य को खुश करने के ल‍िए कर्ण रोजना कई घंटे पानी में खड़े रहकर भगवान सूर्य का ध्‍यान करते थे। ऐसे में सूर्य की उन पर व‍िशेष कृपा रहती थी। भगवान सूर्य देव के आशीर्वाद से ही कुंती पुत्र कर्ण महान योद्धा बने थे। 

 

छठ पूजा रामायण काल से भी जुड़ी मानी जाती है। मान्‍यता है क‍ि जब सूर्यवंशी श्रीराम जी अपना वनवास पूरा कर अयोध्‍या लौटे तब धूमधाम से उनका राज्‍यभ‍िषेक हुआ था। इसके बाद ऋषि-मुनियों ने उन्‍हें भगवान सूर्यदेव के सम्‍मान में सबसे पहले रावण वध के पाप से मुक्‍त होने के लि‍ए कहा। इससे मुक्‍त‍ि के ल‍िए राजसूय यज्ञ कराने की सलाह दी थी। वहीं मुग्दल ऋषि ने भगवान श्रीराम एवं सीता माता को अपने आश्रम में बुलाया और छठ पूजा करने को कहा। मुग्दल ऋषि के कहे अनुसार सीता माता ने उनके आश्रम में ही रहकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्य देव की उपासना व व्रत क‍िया था।

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