जम्हूरियत, इंसानियत और कश्मीरियत के लिए केंद्र सरकार की पहल से बढ़ी उम्मीदें

नई दिल्ली जिसकी फिजा में घुली मुहब्बत और केसर की खुशबू है। जिसके जिस्मों पर बर्फ की चादर लपेटे पहाड़ हैं। जिसकी हसीं वादियों में चश्में, नाग और धाराओं से कल-कल, छल-छल करता पानी सरगम गाता फिरता है। जिसके खूबसूरत नजारों को देखते ही अनायास जहांगीर ने फारसी में कह डाला – ‘गर फिरदौस बर रुए जमीं अस्त, हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त’ अर्थात अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं पर है और केवल यहीं पर है और निश्चित रूप से यहां पर है। 'भारत का कोहिनूर' कश्मीर देखने को किसका मन नहीं ललचाता है। लेकिन कश्मीर पर नापाक लोगों की नजर लग गई है। जिहाद के नाम पर आतंकी संगठन आम कश्मीरी युवकों को गुमराह कर रहे हैं। लेकिन अब केंद्र सरकार पुख्ता कदम के साथ नासूर बन चुके आतंकवाद का सामना करने के लिए नए कलेवर के साथ सामने आई है। केंद्र सरकार के इस खास फैसले को जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से क्या कहा था।

 

जब पीएम ने कहा- न गोली, न गाली 

15 अगस्त 2017 को लाल किले से अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कश्मीर समस्या का समाधान न तो गोली से और न ही गाली से निकलेगा। यह केवल कश्मीरियों को गले लगाने से ही निकलेगा। इसके अलावा कश्मीर घाटी का कई बार दौरा कर चुके गृहमंत्री राजनाथ सिंह बार-बार कहते हैं कि जम्हूरियत, कश्मीरियत और इंसानियत ही वो तीन शब्द हैं जिनके जरिए गुमराह हो चुके युवकों को मुख्यधारा में शामिल करने की कोशिश की जा रही है। कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार का नया फैसला काफी अहम है। स्थायी समाधान की तलाश में पहले चरण में उन ताकतों को बहुत हद तक कुचला जा चुका है, जो आतंक में विश्वास रखते थे। अब बातचीत के जरिये ऐसा माहौल बनाने की कोशिश होगी, जिसमें विकास की धारा तेज हो सके। गृह मंत्री ने कहा कि दिनेश्वर शर्मा जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीनों इलाकों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर उनकी अपेक्षाओं को समझने की कोशिश करेंगे। राज्य के युवाओं को बातचीत में ज्यादा तरजीह जाएगी।

 

दिनेश्वर शर्मा के हाथ में कमान

मोदी सरकार ने राज्य के सभी पक्षों से बातचीत शुरू करने के लिए खुफिया ब्यूरो के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को अपना प्रतिनिधि बनाया है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को पत्रकार वार्ता में इसका एलान किया। उन्होंने कहा कि हुर्रियत नेताओं से बातचीत पर फैसला खुद दिनेश्वर शर्मा करेंगे। किन-किन लोगों से बातचीत की जानी चाहिए, इसका फैसला भी शर्मा ही करेंगे। इस बार घाटी में अलगाववादी और आतंकी बैकफुट पर हैं। अधिकांश बड़े आतंकियों को मार गिराने के बाद सुरक्षा बल उनका मनोबल तोड़ने में सफल रहे हैं। सीमा पार से आतंकी घुसपैठ पर काफी हद तक अंकुश लग चुका है।

 

उधर दिनेश्वर शर्मा ने कहा कि कश्मीर मामले में वार्ताकार नियुक्त किए जाने के लिए मैं केंद्र सरकार को धन्यवाद देता हूं। निश्चित रूप से यह एक बड़ी जिम्मेदारी है। मैं सरकार और लोगों की उम्मीद पूरा करने का भरसक प्रयत्न करूंगा। जो भी व्यक्ति शांति बहाल करने के लिए उत्सुक होगा, उसके साथ वार्ता की जाएगी।

 

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा, कश्मीर में बातचीत फिर शुरू करने का केंद्र का कदम स्वागत योग्य है। बातचीत आज की जरूरत है और यही समाधान का एकमात्र तरीका है।

 

जबकि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला कहते हैं कि यह इस बात की स्वीकारोक्ति है कि कश्मीर की समस्या राजनीतिक है। यह उन लोगों की हार है, जो ताकत के बल पर समाधान चाहते हैं।

 

सरकार ने मान लिया है कि ताकत के बल पर समाधान संभव नहीं है। यह उन लोगों की जीत है जो समस्या के राजनीतिक समाधान के पक्षधर हैं। – पी चिदंबरम, पूर्व गृह मंत्री और कांग्रेस नेता

 

कश्मीर के आम लोगों की राय

अनंतनाग के रहने वाले कुछ युवाओं से Jagran.Com ने खास बातचीत की। केंद्र सरकार द्वारा वार्ताकार नियुक्त करने के फैसले को उन युवाओं ने सराहा। उन लोगों का कहना था कि इसमें शक नहीं कि आज कश्मीर घाटी आतंकवाद का सामना कर रही है। लेकिन एक सच ये भी है कि युवाओं के पास रोजगार के साधनों की कमी है। केंद्र सरकार ने हाल ही में कुछ सराहनीय फैसले किए हैं, जिसका सकारात्मक असर दिखाई भी दे रहा है। 

 

पहले भी हो चुके हैं प्रयास

 

अटल सरकार में प्रयास

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने हुर्रियत नेताओं से बातचीत के प्रयास शुरू किए थे। खुद तत्कालीन पीएम वाजपेयी और डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी हुर्रियत नेताओं से मिले थे।

 

एन एन वोहरा भी रहे वार्ताकार

2003 में वार्ता के लिए केंद्र सरकार की तरफ से विशेष वार्ताकार एन एन वोहरा को जिम्मेदारी दी गई। वोहरा मौजूदा समय में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल हैं। उनके पहले केसी पंत और अरुण जेटली को भी वार्ता की जिम्मेदारी दी गई थी। पूर्व रॉ प्रमुख एएस दुल्लत को भी 2001 से 2004 के बीच कश्मीर मामलों में सलाह के लिए पीएमओ में नियुक्त किया गया था। उस दौरान उन्होंने वार्ता की कोशिश शुरू की थी।

 

यूपीए-2 में प्रयास

2010 में घाटी में हिंसा भड़कने के बाद तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह की यूपीए दो की सरकार ने दिलीप पडगांवकर, पूर्व सूचना आयुक्त एमए अंसारी और राधा कुमार को कश्मीर के लिए वार्ताकार नियुक्त किया था। इन वार्ताकारों ने सैकड़ों प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। तीन बार गोलमेज सम्मेलन भी किए। 2011 में इस समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कश्मीर में सेना को धीरे-धीरे कम किया जाना चाहिए। मानवाधिकार उल्लंघन के मुद्दे पर भी ध्यान देने को कहा। सुरक्षा बल विशेषाधिकार अफस्पा की समीक्षा का सुझाव भी दिया था। लेकिन वार्ताकारों की कई सिफारिशों को सरकार ने व्यावहारिक नहीं माना।

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