डिफेंडर निशा का ओलंपिक सफर रहा है बेहद कठिन

बेंगलुरु । डिफेंडर निशा वारसी पहली बार ओलंपिक में भाग लेगी। निशा कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम का हिस्सा रहीं प्रीतम रानी सिवाच की सोनीपत स्थित अकादमी से हैं। उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए कई मुश्किलों से जूझना पड़ा । उनके पिता सोहराब अहमद, एक दर्जी थे। लेकिन साल 2015 में उन्हें लकवा मार गया और उन्हें काम छोड़ना पड़ा। उनकी मां महरून एक फोम बनाने वाली कंपनी में काम किया करती लेकिन निशा को रेलवे में नौकरी मिलने के बाद उन्होंने काम छोड़ दिया।
कई सामाजिक बाधाएं भी थीं। लेकिन कोच सिवाच ने निशा का साथ दिया। उन्होंने उनके माता-पिता को समझाया। उन्हें निशा को अपने सपने पूरा करने देने के लिए मनाया। हालांकि यह रुकावट कुछ ही समय के लिए थी। निशा ने कहा, 'जिंदगी आसान नहीं थी। मैं खेल को लेकर काफी जुनूनी थी लेकिन हमारा गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा था। मेरे माता-पिता मेरे खेल करियर में निवेश नहीं कर सकते थे। मैंने हॉकी इसलिए चुनी क्योंकि हमें उपकरणों पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़े।' 
कुछ समय बाद निशा, हरियाणा टीम और फिर रेलवे की अहम सदस्य बन गईं। उनकी कमाई से घर पर जिंदगी थोड़ी आसान हो गई। 2018 में निशा को भारतीय टीम के कैंप के लिए चुना गया लेकिन घर छोड़ने का फैसला आसान नहीं था। उसने अपना इंटरनैशनल डेब्यू 2019 में हिरोशिमा में एफआईएच फाइनल्स में किया। तब से वह नौ बार भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। कोरोना महामारी निशा के लिए भी आसान नहीं रही। उन्होंने पिछले डेढ़ साल में से ज्यादातर समय स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के साउथ सेंटर में नैशनल कैंप में बिताया पर कहा कि हालात ने मुझे अच्छा प्रदर्शन करने के लिए अधिक प्रतिबद्ध किया है।' 
 

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