तिनके भी काफी हैं तकदीर बदलने को

मधुबनी। मुन्नी देवी पांचवीं तक पढ़ी हैं, लेकिन सधी हुई अंगुलियां जब घास के सीकों पर चलती हैं तो मनमोहक कलाकृति उभर आती है। मुन्नी ने घास के तिनकों की कलाकारी से वह मुकाम हासिल किया है, जो प्रेरक मिसाल बन गया। सिर्फ कला नहीं, बल्कि कला के जरिये निश्चित आमदनी भी। मुन्नी की बनाई इस राह पर अब अनेक युवतियां चल रही हैं। राज्य पुरस्कार से सम्मानित मुन्नी की कला के मुरीद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हैं। 

 

बिहार के मधुबनी जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर रैयाम गांव स्थित मुन्नी का घर मानो कला का अद्भुत संसार है। 49 वर्षीय मुन्नी तीन दशक पहले जब ब्याह कर ससुराल आईं तो गुरबत से पाला पड़ा। पति विनय ठाकुर की आमदनी इतनी नहीं थी, जिससे परिवार का ठीक से भरण-पोषण हो। मुन्नी को महसूस हुआ कि उन्हें भी कुछ करना चाहिए। नेपाल में अपने मायके से सीखकर आईं सिक्की शिल्प की कला को उनकी सास ने निखारा। 

 

समय के साथ मुन्नी ने इसमें आधुनिकता का मिश्रण किया। पारंपरिक विषयों से अलग खिलौने, बैग, आभूषण रखने के बक्से, कलश, गमले, कान-नाक के गहने, देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, टेबल मैट और ट्रे के अलावा  घरेलू उपयोग की अन्य वस्तुएं बनाने लगीं। जब मांग बढ़ने लगी तो वे उपेंद्र महारथी कला संस्थान, पटना से जुड़ गईं। इसके बाद देशभर में लगने वाली शिल्प कला प्रदर्शनियों के जरिये उनकी कला को विशेष पहचान मिलती गई। 

 

मिला राज्य पुरस्कार : 

 

मुन्नी देवी को वर्ष 2012-13 में राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनका बनाया विवाह मंडप पटना के बिहार संग्रहालय में शोभा बढ़ा रहा है। इस कलाकृति में मिथिला में शादी के अवसर पर होने वाली रस्मों, वर-कन्या पक्ष के जुटान, पारंपरिक विधि से सजे मंडप को बारीकी से उभारा गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुले दिल से इसकी तारीफ की थी।

 

कला के साथ कमाई भी : 

 

मुन्नी की कलाकृतियों और कलापूर्ण वस्तुओं की मांग दिनों दिन बढ़ रही है। हालांकि इसे उन्होंने व्यवसाय का रूप नहीं दिया है। खुद जितना बना पाती हैं, यह वहीं तक सीमित है। इसके लिए उन्हें आर्डर दिल्ली सहित देश के विभिन्न शहरों से मोबाइल पर मिलते हैं। वे कोरियर से इन वस्तुओं की सप्लाई करती हैं। इससे हर महीने उन्हें 15 से 20 हजार रुपये की आमदनी होती है। मुन्नी कहती हैं कि प्लास्टिक और कांच से निर्मित खिलौने और अन्य वस्तुएं पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि सिक्की (घास के तिनके) पर्यावरण के अनुकूल हैं। इसके कलाकारों को पर्याप्त विकास की दरकार है। रैयाम की ही भारती रानी, रूपा कुमारी, खुशबू कुमारी, सावित्री देवी, काजल कुमारी, नूतन और मीरा देवी सहित करीब पांच दर्जन महिलाएं और युवतियां मुन्नी से निशुल्क प्रशिक्षण लेकर पांच से आठ हजार रुपये प्रतिमाह कमा रही हैं। इस कला के प्रशिक्षण के लिए फिलहाल कोई केंद्र मौजूद नहीं है।

 

क्या है सिक्की शिल्प : 

 

अमूमन जुलाई से नवंबर तक तालाब किनारे और जलजमाव वाले स्थानों में सिक्की घास बहुतायत में उगती है। लाल फूल आने के साथ ही इसकी कटाई कर ली जाती है। उसे दो भागों में चीरकर सुखाया जाता है। इसके बाद यह उपयोग के लिए तैयार होती है। तैयार सिक्की तीन से चार सौ रुपये प्रतिकिलो बिकती है। इसे विभिन्न रंगों में रंगकर वस्तुएं तैयार की जाती हैं।

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