नर या नारायण कौन थे ‘राम’ 

श्रीराम पूर्णत? ईश्वर हैं। भगवान हैं। साथ ही पूर्ण मानव भी हैं। उनके लीला चरित्र में जहां एक ओर ईश्वरत्व का वैचित्रमय लीला विन्यास है, वहीं दूसरी ओर मानवता का प्रकाश भी है। विश्वव्यापिनी विशाल यशकीर्ति के साथ सम्यक निरभिमानिता है। वज्रवत न्याय कठोरता के साथ पुष्यवत प्रेमकोमलता है। अनंत कर्ममय जीवन के साथ संपूर्ण वैराग्य और उपरति है। समस्त निषमताओं के साथ नित्य सहज समता है। अनंत वीरता के साथ मनमोहक नित्य सौंदर्य है। इस प्रकार असंख्य परस्पर विरोधी गुणों और भावों का समन्वय है। भगवान श्री राम की लीला चरित्रों का श्रद्धा भक्ति के साथ चिंतन, अध्ययन व विचार करने पर साधारण नर नारी भी सर्वगुण समन्वित एवं सर्वगुण रहित अखिल विश्व व्यापी, सर्वातीत, सर्वमय श्रीराम को अपने निकटस्थ अनुभव कर सकते हैं।  
श्री राम में नर और नारायण तथा मानव और ईश्वर की दूरी मिटाकर भगवान के नित्य परिपूर्ण स्वरूप का परिचय मिलता है। भगवान पुरुषोत्तम ने श्री राम के रूप में प्रकट होकर मानवीय रूप में सांसारिक लोगों के दिलो दिमाग पर नित्य प्रभुत्व की प्रतिष्ठा कर समस्त भारतीय संस्कृति को आध्यात्म भाव से ओतप्रोत कर दिया है। रामचरितमानस महाकवि तुलसीदास की अमर कृति है। यह एक ऐसा सर्वोपयोगी आदर्श प्रदर्शित करने वाला पवित्र धर्मग्रंथ है। जिसने मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्रीराम को समस्त नर नारियों के हृदय में परम देवत्व रूप के साथ अत्यंत आत्मीय रूप में प्रतिष्ठत किया है। इसने शिक्षित अशिक्षित? आबाल वृद्ध स्त्री-पुरुष सभी प्रकार के जीवन को श्रीराम के प्रति भक्ति तथा प्रेम के दिव्य, मधुर सुधारस से अभिषिक्त कर अपना अद्भुत प्रभाव विस्तार किया है।  
श्रीरामचरितमानस के श्रीराम सर्वसद्गुण संपन्न मर्यादारक्षक परम आदर्श शिरोमणि होने के साथ ही स्वमहिमा में स्थित महामानव है। श्रीरामचरित मानस के श्रवण, मनन तथा चिंतन से अत्यंत विष्यासक्त, असदाचारी कठोर हृदय मानव भी पवित्र विचार परायण एवं सदाचारी होकर निर्मल प्रेम भक्ति की रसधारा में सराबोर होकर मुक्ति प्राप्त कर सकता है।  
इस ग्रंथ के सभी पात्र आदर्श चरित्र से परिपूर्ण हैं। इसमें गुरु शिष्य, माता पिता, भ्राता पुत्र स्वामी सेवक, प्रेम सेवा, क्षमा, वीरता, दान, त्याग, धर्मनीति आदि संपूर्ण आदर्शों के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं। यही कारण है कि इस ग्रंथ का सर्वत्र समादर है। तथा यह सर्वप्रिय ग्रंथ है। श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों को अधिकांश मानव मंत्रवत कर जप परायण करते हैं।  
वाल्मीकि ने श्री रामायण की रचना करते समय श्रीराम कथा के रूप में मानवता की कथा कही है। उन्होंने श्रीराम के चरित्र के माध्यम से विश्व के मानवों को मानवता का संदेश दिया है। राम जैसा नर मानव है। राम के समान चरित से मानवता की प्राप्ति होती है। राम एक ऐसे सेतु हैं जहां एक छोर से शुरू होकर मनुष्य दूसरे छोर पर परमात्मा तक पहुंच जाता है।  

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