नहाय-खाय के साथ महापर्व-छठ आज से, इस व्रत को ले प्रचलित हैं ये अनुश्रुतियां
पटना । छठ को मन्नतों का त्योहार कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। 24 अक्टूबर से शुरू हो रहा छठ पूजा उत्सव 27 अक्टूबर तक चलेगा। नहाय खाय के साथ ये महापर्व शुरू हो जायेगा। पूजा चार चरणों में संपन्न होती है। इस व्रत को लेकर कई अनुश्रुतियां प्रचलित हैं।
साल में दो बार आने वाले इस त्योहार को सिर्फ बिहार व यूपी नहीं, बल्कि विदेश में भी मनाया जाता है। कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की षष्टी को मनाए जाने वाला यह व्रत लोगों की जिंदगी में खुशियों और आस्था का प्रतीक है।
व्रत को लेकर प्रचलित हैं ये कथाएं
व्रत के पीछे कई मान्यताएं और कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि देवासुर लड़ाई में जब देवता हार गए तो देव माता अदिति ने पुत्र प्राप्ति के लिए देव के जंगलों में मैया छठी की पूजा अर्चना की थी। इस पूजा से खुश होकर छठी मैया ने आदित्य को पुत्र दिया और उसके बाद छठी मैया की देन इस पुत्र ने सभी देवतागण को जीत दिलाई। तभी से मान्यता चली आ रही कि छठ मैया की पूजा-अर्चना करने से सभी दुखों का निवारण होता है।
इसके अलावा एक और कथा प्रचलित है। कहा माना जाता है कि माता सीता ने भी सूर्य देवता की अाराधना की थी। इस कथा के अनुसार कहा जाता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता जब 14 वर्ष का वनवास काट कर लौटे थे तब माता सीता ने इस व्रत को किया था।
छठ पूजा 2017 का कैलेंडर
पहला दिन (24 अक्टूबर, नहाय खाय):
नहाय खाय को छठ पूजा का पहला दिन होता है। इस दिन व्रती तालाब, नहर या नदी में स्नान करते हैं। नहाय खाय के दिन लौकी आदि खाने की परंपरा है।
दूसरा दिन (25 अक्टूबर, खरना या लोहंडा) :
छठ पूजा के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती गुड़ की खीर बना कर खाते हैं। इसके बाद से 36 घंटे तक व्रती कुछ नहीं खाते हैं। उपवास के दौरान व्रती शुद्धता और पवित्रता का पूरा ख्याल रखते हैं।
तीसरा दिन (26 अक्टूबर, संध्या या शाम का अर्घ्य):
खरना के अगले दिन संध्या अर्घ्य यानी शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। साथ ही छठी मैया की पूजा होती है। सभी व्रती नदी किनारे फल-फूल और पकवान बना कर सूर्य के साथ छठी मैया की पूजा करते हैं। इस दौरान लोग छठी मैया की गीत भी गाते हैं।
चौथा दिन (27 अक्टूबर, भोर या उषा अर्घ्य):
छठ पूजा का चौथा दिन भोर या ऊषा के अर्घ्य का होता है। इस दिन सूर्योदय से पहले नदी के किनारे जाते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं।