पर्यावरण दिवस आज: हर धर्म ने माना प्राकृतिक विनाश से विकास संभव नहीं

आज पर्यावरण चिंतन वैश्विक स्तर का मुद्दा है। इस धरती पर रहने वाले जीव जंतुओं, प्राणियों को चारों तरफ से ढंक कर रखने वाली चादर आज मानवीय स्वार्थ और गलत जीवन शैली के चलते मैली हो गई है। पानी हो या हवा हर जगह कुदरत गलत मानवीय तरीकों का संताप झेल रही है। हम विकास की बात तो करते हैं पर इंसान के निजी स्वार्थ के चलते जो प्राकृतिक विनाश हुआ है उसका खमियाजा आज सम्पूर्ण मानव जाति को ही उठाना पड़ रहा है। 


आज हमारे पास न तो शुद्ध पानी है, न हवा और न ही शांत वातावरण। दूषित पानी और हवा का जहां असर सीधा मानवीय स्वास्थ्य पर हुआ है वहीं ध्वनि प्रदूषण के चलते शांतमय वातावरण के अभाव में मनुष्य तनावग्रस्त हुआ है। चिडिय़ों की चीं-चीं और कोयल की कू-कू प्रैशर हार्न की आवाज तले दब गई है। बड़े-बड़े टावर लगाने के चक्कर में हम आकाश में उडऩे वाले पक्षियों को खो रहे हैं। फलों और सब्जियों पर कीटनाशकों का छिड़काव मनुष्य के लिए काल साबित हुआ है। आज लोगों में पेट के रोग, आंतों की समस्या, फेफड़ों से संबंधित बीमारियां, कैंसर जैसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं।


पर्यावरण और धर्म
भौतिक सुख-सुविधाओं की अंधी दौड़ में आज मनुष्य ने सुंदर प्रकृति को पददलित कर दिया है। स्मरण रहे कि इस सुंदर प्रकृति का वर्णन हमारे इतिहास, धर्म और परम्पराओं में निहित है। प्रत्येक धर्म में प्रकृति के महत्व की गाथा गाई गई है और कोई भी धर्म इसके नुक्सान को नहीं कहता। हर धर्म में मनुष्य को चेताया गया है कि अगर प्रकृति का संरक्षण नहीं किया गया तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे और आज ऐसा हो भी रहा है।


हिंदू धर्म में प्रकृति पूजन का खास महत्व है। दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद का प्रथम मंत्र ही अग्रि स्तुति में कहा गया है। इस धर्म में जल और जंगल को पृथ्वी का आधार माना गया है। कहा गया है-
वृक्षाद वर्षार्त पर्जन्य : पर्जन्यादन्न संभव 
अर्थात वृक्ष जल हैं, जल अन्न है, अन्न जीवन है।


हिंदू वेद, उपनिषद, पुराण, स्मृतियां सुंदर सृष्टि के संरक्षण की गवाही देते हैं। इसमें कहीं पेड़ की तुलना संतान से की गई है तो कहीं नदी को मां का स्वरूप कहा गया है। महाभारत में तो श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने प्राकृतिक शक्तियों की उपासना को श्रेयस प्राप्ति का मार्ग बताया है। यही नहीं हर हिंदू परम्परा के पीछे वैज्ञानिक रहस्य भी छिपा है। हिंदू धर्म में तुलसी और पीपल को पूजनीय माना जाता है। अगर इनके वैज्ञानिक पक्ष की बात की जाए तो दोनों ही ऑक्सीजन के अच्छे स्रोत हैं, तुलसी के औषधीय गुण मानवीय जीवन के लिए अमृत समान हैं।


यही कारण है कि सम्राट अशोक और विक्रमादित्य के राजकाल में प्रकृति संरक्षण सर्वोपरि था। चाणक्य ने तो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अरण्यपाल तक नियुक्त किए थे।


गुरु ग्रंथ साहिब में हवा को गुरु, पानी को पिता तथा धरती को मां का दर्जा दिया गया है : 
पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत।


हवा, पानी और आकाश भगवान के मंदिर और घर हैं : 
पौण पानी धरती आकाश, घर मंदिर हरि बनि।


गुरु हर राय जी महान पर्यावरणविद् थे। उन्होंने श्री कीरतपुर साहिब में सुंदर वृक्ष लगवाए तथा समूह संगत को पर्यावरण संभालने के लिए प्रेरित किया।


कुरान भी पुष्टि करता है कि खुदा ने मनुष्य को मिट्टी से पैदा किया है और उसका अंत भी मिट्टी ही हो जाना है। इसमें मनुष्य को अल्लाह द्वारा प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए कहा गया है। पैगम्बर  मुहम्मद ने मदीना के अपने शहर के चारों ओर 30 कि.मी. तक सुंदर वृक्ष लगवाए और वृक्ष काटने की सख्त मनाही की। उनका मानना था कि ये वृक्ष राहगीरों और जानवरों को ठंडी छाया प्रदान करते हैं। वह धरती को मस्जिद का दर्जा देते थे।


ईसाई धर्म में कहा गया है कि जिस प्रकार एक इंसान का कत्ल सम्पूर्ण मानवता का कत्ल है उसी प्रकार एक वृक्ष को उजाडऩा सम्पूर्ण प्रकृति को उजाडऩे के बराबर माना जाएगा। प्रकृति को एक अनमोल उपहार माना गया है।


संक्षेप में आज जरूरत है कि हम पृथ्वी को अपना आवास, अपना घर मानें। सिर्फ पर्यावरण दिवस मनाकर, स्लोगन लिखकर या एक पौधा लगाकर अपनी जिम्मेदारी से फारिग न हो जाएं बल्कि इसके संरक्षण का प्रण लें। याद रखें कि प्राकृतिक विनाश से किसी भी तरह का विकास संभव नहीं।

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