पूर्व दिशा हो दूषित तो जातक को होते हैं ये बड़े नुकसान

वास्तु शास्त्र के अनुसार कुल दस दिशाएं होतीं हैं, इनकी शुरुआत ऊर्ध्व व ईशान से तथा उत्तर-अधो पर समाप्ति होती है। कहा जाता है दिशा में जहां दिशा शूल होता है, वहीं राहु काल नुकसानदायक होता है। तो वहीं दूसरी ओर, प्रत्येक दिशा के दिग्पाल होते हैं और उनके ग्रह स्वामी भी। ये होती हैं वो दस दिशाएं 1. ऊर्ध्व 2. ईशान, 3. पूर्व, 4. आग्नेय, 5. दक्षिण, 6. नैऋत्य, 7. पश्चिम, 8. वायव्य, 9. उत्तर और 10. अधो। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि पूर्व दिशा में किस तरह के दोष होने से जातक को कौन से नुकसान होते हैं।

धार्मिक, ज्योतिष व वास्तु शास्त्र में कहा गया है कि पूर्व दिशा के देवता स्वर्ग के देवता इंद्र देव तथा नवग्रह को राजा सूर्य देव होते हैं। इसके अलावा इसी दिशा को पितृस्थाव का द्योतक भी माना जाता है। सूर्य देव को पिता, पितृ, आत्मा, आरोग्य, स्वभाव, राज्य, देवालय का सूचक एवं पितृ कारक कहा जाता है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि सूर्य से ही मनुष्य के दिमाग समेत शरीर का दायां भाग प्रभावित होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व का मकान अच्छा होता है लेकिन घर की पूर्व दिशा यदि दूषित हो तो निम्नलिखित परेशानी और रोग उत्पन्न होता है। यहां दूषित होने का मतलब इस स्थान पर कोई शौचालय होना, मशीनरी या लोहे का सामान रखा होना, टूटा-फूटा दरवाजा होना, स्तंभ या वृक्ष वेध हो आदि होना।

आइए जानते हैं इस दिशा में दोष होने से कैसे नुकसान होते हैं-

पूर्व दिशा दोष से 10 नुकसान :
वास्तु शास्त्र के मुताबिक पूर्व दिशा में दोष हो या जन्मपत्री में सूर्य पीड़ित हो तो पिता से सम्बन्धों में कटुता रहती है। इससे कुंडली में पितृ दोष भी पैदा होता है।

ऐसे में सरकार या शासन से संबंधित परेशानियां खड़ी हो जाती हैं, साथ ही साथ राज दंड का भय रहता है।

अगर कोई जातक सरकारी नौकरी कर रहा होता है तो सरकारी नौकरी में परेशानी उत्पन्न हो जाती हैं। तो वहीं प्राइवेट नौकरी भी जाने के आसारा बनने लगते हैं।

इस दिशा में दोष होने से व्यक्ति को सिरदर्द, आधासीसी अर्थात माइग्रेन आदि हो जाता है। मस्तिष्क की दुर्बलता पैदा होती है, बेहोशी का रोग होता है और सिरदर्द हमेशा बना रहता है।

नेत्र रोग या आंखों की ज्योति कमजोर हो जाती है, तो वहीं घर में सोना चोरी होने का डर बना रहता है।

ऐसी परिस्थिति में हृदय संबंधी कोई रोग व दिल का रोग हो जाता है, जैसे धड़कन का कम-ज्यादा होना। चर्म रोग या स्कीन संबंधी शिकायतें होेने लगती हैं।

वास्तु शास्त्री बताते हैं इस दिशा के दूषित होने से व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है। शरीर में अकड़न आ जाती है। मुंह में थूक बना रहता है।
 

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