बच्चों को समय-समय पर दें जरुरी जानकारियां

बच्चों को उत्साही, और निडर बनाये ताकि वह जीवन में आने वाली किसी भी समस्या का सामना कर सके। बच्चों को शुरु से ही जरुरी जानकारी भी दें ताकि किसी कठिनाई में भी वह निकलने में सफल हो सके। ढाई से पांच साल के बच्चे को घर का पता, फोन नंबर याद करवाना शुरू कर दें। अकेले में चाहे गली के नुक्कड़ में एक दुकान हो, तो भी उन्हें टॉफी, बिस्कुट, चाकलेट लेने ना भेजें। बच्चों को बताएं कि किसी भी अनजान आंटी, अंकल से टॉफी, चाकलेट खाने को ना लें। परिवार के सदस्यों के अलावा किसी के कहने पर घर से बाहर ना जाएं।
बच्चों को पुलिस वालों की यूनिफार्म की पहचान कराएं ताकि वे समझ सकें कि यह पुलिस वाला है।
अगर आप किसी मेले या मॉल में घूमने गए हैं तो बच्चों की पाकेट में घर का पता, फोन नंबर अवश्य डाल दें और बच्चे को भी समझा दें कि किसी परिस्थिति में अलग होने पर पुलिस मैन, सिक्योरिटी गार्ड या दुकानदार के पास जाकर अपने अलग होने की सूचना दे दें ताकि वे बच्चे का नाम और बच्चा कहां पर खड़ा है, किसके पास है, उसकी सूचना प्रसारित कर सकें।
किसी भी इलेक्ट्रानिक गेजेट्स को बच्चे ना छुएं, ना ही ऑन करें। उन्हें समझाएं कि ये चीजें खतरनाक हैं। इनका प्रयोग वे अपनी मर्जी से ना करें। गैस जलाने से भी उन्हें दूर रखें। उन्हें समझाएं कि बड़े होने पर आपको इसका प्रयोग सिखाया जाएगा।
बच्चों को बचपन से थैंक्यू, सॉरी, प्लीज, मैनर्स, घर पर आए अतिथि का सम्मान करना या बाहर किसी के घर जाने पर उन्हें विश करना आदि मैनर्स सिखाएं।
प्रारंभ से अपने खिलौने, चप्पल, बैग स्थान पर रखना सिखाएं।
टॉफी, चाकलेट, बिस्किट-कवर को डस्टबिन में डालना सिखाएं।
खाते समय बात अधिक न करें, न ही टीवी देखें, इस बारे में उन्हें बताएं कि ये बैड मेनर्स होते हैं।
घर के टायलेट, वाशरूम के लॉक, चिटकनी खोलना सिखाएं। पब्लिक प्लेस पर आप उनके साथ रहें और उन्हें बताएं कि अंदर से वे लॉक न करें, बस दरवाजा ऐसे ही बंद कर दें क्योंकि आप उनका ध्यान रखने के लिए बाहर हैं।
बच्चों को गुड और बैड टच की पहचान बताएं। कोई भी उनके कपड़े खींचने, उतारने, हग करने, किस करने का प्रयास करे। तो शोर मचाएं और अपने माता-पिता, दादा-दादी को इस बारे में बताएं।
कहें। 2 से 5 रूपये तक की टाफी, चाकलेट, बिस्किट, चिप्स खरीदने के लिए खुले पैसे दें।
बच्चों को बचपन से घर के बड़ों का आदर करना, आराम से बात करना, जवाब ना देना, मदद करना सिखाएं। पहले स्वयं भी अपने जीवन में उन आदतों को उतारें ताकि उसे यह समझने में आसानी हो। 
जब दो लोग बात कर रहे हों तो बच्चे अपनी बात उस समय न बोलें। अगर जरूरी कुछ कहना हो तो एक्सक्यूज-मी कहकर बात शुरू करें।
दूसरे बच्चे से कुछ भी उनके हाथ से छीनना, उन्हें मारना, शेयर ना करना अच्छी आदतें हैं, ऐसा करने पर उन्हें समझाएं।
अपने से छोटे बच्चों को प्यार करना सिखाएं।

6 से 10 साल के बच्चों के लिए:-
आधुनिक उपयोगी उपकरणों का प्रयोग सिखाएं जैसे मोबाइल से बात करना, नंबर मिलाना, मैसेज टाइप करना ताकि आपात स्थिति में वह आपसे संपर्क कर सके। अगर माता-पिता दोनों कामकाजी हों तो उन्हें लैंडलाइन पर नंबर मिलाकर बात करना भी सिखाएं। कुछ जरूरी नंबर उन्हें लिख कर दे दें।
बच्चों को स्कूल टाइम टेबल के अनुसार बैग पैक करना सिखाएं। प्रारंभ में आप नजर रखें और जरूरत पड़ने पर मदद करें। इसी प्रकार यूनिफार्म व स्पोर्टस के लिए क्या ले जाना है, यह भी सिखाएं।
बच्चों को स्कूल में कंप्यूटर चलाना प्रथम कक्षा से शुरू किया जाता है। अगर बच्चा घर पर भी पेंट-ब्रश, पावर-पांइट, वर्ड पैड के लिए कंप्यूटर का प्रयोग करे तो उसे ठीक तरीके से ऑन और ऑफ करना सिखाएं ताकि आपकी गैर मौजूदगी में आसानी से बंद कर सके। इसी प्रकार टीवी, कूलर,पंखा, एसी,लाइट, माइक्रोवेव ऑन व बंद करना सिखाएं।
अगर बच्चा घर पर कुछ समय के लिए अकेला है तो उसे बताएं कि किसी के डोर-बैल बजाने पर दरवाजा न खोले। जो भी कोई अजनबी आए, उसे बाद में आने को कह दे।
फर्स्ट एड बॉक्स को आपात स्थिति में कैसे प्रयोग किया जाए, उसे बताएं कि जैसे जल जाने पर ठंडा पानी डालें, चोट लगने पर पानी से साफ कर एंटी सेप्टिक टयूब लगाना, बैंडेड लगाना, रूई से कैसे साफ किया जाए और दवा लगाई जाए, बताएं।
बच्चों के साथ आप इंडोर गेम्स खेलते हैं तो उनके हारने पर उन्हें समझाएं कि जीत और हार गेम के दो पहलू होते हैं। कभी जीत होती है, तो कभी हार भी, परंतु हारने पर निराश न होकर उसे गेम का हिस्सा मानें।
गुस्सा आने पर चीजें न पटकने की आदत डालें ताकि वह इसे रूटीन में न लें।
बच्चों को स्कूल-यूनिफार्म पहनना, उतारना, घर पर दूसरे कपड़े पहनना सिखाएं। जूते, मोजे पहनना उताकर उन्हें सही स्थान पर रखना सिखाएं।
इस आयु के बच्चों को हॉबी क्लास अवश्य भेजें ताकि समय का सही प्रयोग कर उनकी प्रतिभा का सही विकास हो सके।

11-15 के बच्चों के लिए:-
इस आयु में बच्चा किशोरावस्था में पहुंच जाता है, इसलिए उसे अच्छी जानकारी व ज्ञान दें।
माइक्रोवेव, गैस जलाकर खाना गर्म करना सिखाएं और उसे उनकी सावधानियों के बारे में भी बताएं।
इस आयु में जिम्मेदारी निभाना सिखाएं, जैसे छोटे बहन भाई का ध्यान रखना, दादा-दादी के छोटे-छोटे काम करना आदि। जिम्मेदारी से बच्चों में धैर्य-शक्ति बढ़ती है। फ्रिज की पानी वाली बोतलें भरना, अपने बैड की चादर ठीक करना, किताबें संभालना, स्टडी टेबल साफ करना, झूठे बर्तन यथा-स्थान पर रखना, गली की दुकान से छोटा-मोटा सामान लेना आदि।
बच्चे घर पर अकेले रहते हों तो उन्हें जरूरी फोन नंबर की जानकारी दें। इसमें पुलिस स्टेशन, फायर बिग्रेड, एंबुलेंस का नंबर और विश्वसनीय पड़ोसी का नंबर आदि दें।
बच्चों को वीकएंड पर योगा, मेडिटेशन की कक्षा में ले जाएं, ताकि शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकें। घर पर उन्हें स्ट्रेस हैंडल करना भी सिखाएं।
बच्चों को सुरक्षा टैनिंग भी छुट्टियों में दिलवाएं ताकि अकेले ट्यूशन पर आते जाते समय या हॉबी क्लास जाते समय अपनी सुरक्षा का ध्यान रख सकें।
नौवीं कक्षा तक आते-आते उन्हें किस लाइन में इंटरेस्ट है, इस विषय पर बात करें, ताकि ग्यारहवीं कक्षा तक पहुंचने से पहले वह अपना माइंड मेकअप कर सकें।
बच्चे की योग्यता को भी मद्देनजर रखें और उन्हें बताएं कि मेहनत और लगन पढ़ाई में आगे बढ़ने के लिए जरूरी है। दूसरों की देखा देखी फैसला न लें।

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