भारतीय नववर्ष अर्थात् नववर्ष प्रतिपदा

06अप्रैल नववर्ष प्रतिपदा पर विशेष
भारतीय नववर्ष का पहला दिन यानि सृष्टि का आरम्भ दिवस, कलियुग का प्रारम्भ, विक्रम् संवत् जैसे प्राचीन संवत का प्रथम दिन, श्रीराम एवं युधिष्ठिर का राज्याभिषेक दिवस, मां दुर्गा की साधना चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस, आर्य समाज का स्थापना दिवस, संत झूलेलाल जयंती, प्रखर देशभक्त डॉ केशवराव हेडगेवार जी का जन्मदिवस आदि।
वास्तव में ये वर्ष का सबसे श्रेष्ठ दिवस है। हिन्दू नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। ब्रह्मपुराण के अनुसार पितामह ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टिनिर्माण प्रारम्भ किया था, इसलिए यह सृष्टि का प्रथम दिन है। इसकी काल गणना बड़ी प्रचीन है। सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक 1 अरब, 95 करोड़, 58 लाख, 85 हजार, 111 वर्ष बीत चुके हैं।
यह गणना ज्योतिष विज्ञान के द्वारा निर्मित है। आधुनिक वैज्ञानिक भी सृष्टि की उत्‍पत्‍ति का समय एक अरब वर्ष से अधिक बता रहे है। अपने देश में कई प्रकार की कालगणना की जाती है जैसे- युगाब्द  (कलियुग का प्रारम्भ), श्री कृष्णच संवत्, शक संवत् आदि हैं।
हिन्दु शास्त्रानुसार इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारम्भ गणितीय और खगोलशास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है। प्रतिपदा हमारे लिये क्‍यों महत्वपूर्ण है, इसके सामाजिक एवं ऐतिहासिक सन्दर्भ हैं-
इसी तिथि को रेवती नक्षत्र में विष्कुम्भ योग में दिन के समय भगवान के आदि अवतार मत्स्य रूप का प्रादुभाव भी माना जाता है।
 युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारम्भ भी इसी तिथि को हुआ था.मर्यादा पुरूषोत्ततम श्रीराम का राज्याभिषेक ।मां दुर्गा की उपासना का नवरात्र व्रत प्रारम्भ,
युगाब्द (युधिष्ठिनर संवत्) का आरम्भ,
उज्जयिनी सम्राट- विक्रामादित्य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्भ।शालिवाहन शक् संवत्,महर्षि दयानंद द्  
ग्रंथो में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी १ रविवार था। हिन्दू नववर्ष अंग्रेजी माह के मार्च – अप्रैल में पड़ता है। इसी कारण भारत मे सभी शासकीय और अशासकीय कार्य तथा वित्त वर्ष भी अप्रैल (चैत्र) मास से प्रारम्भ होता है।
चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है। इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है। हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है।
पेड़-पोधों मे फूल,मंजर,कली इसी समय आना शुरू होते है, वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है। जीवो में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है। इसी दिन ब्रह्मा जी  ने सृष्टि का निर्माण किया था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र की शुरुआत इसी दिन से होती है। जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है।
परम पुरूष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है। इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया।
न शीत न ग्रीष्म। पूरा पावन काल। ऎसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए,  श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि  के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी। यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है। संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया वर्ष यानि वर्ष प्रतिपदा अर्थात् नव संवत्सर।

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