भारत की एंटी सेटेलाइट मिसाइल से क्यों टेंशन में है चीन?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को ऐलान किया कि भारत ने ASAT परीक्षण के दौरान उपग्रह को मार गिराने में कामयाबी पाई है. इससे पहले केवल रूस, अमेरिका और चीन ने ही ये उपलब्धि हासिल की है. इस परीक्षण से भारत ने पूरी दुनिया को अपनी रणनीतिक क्षमता दिखाई.
अंतरिक्ष के क्षेत्र में इस उपलब्धि के साथ भारत यूएस, रूस और चीन जैसे उन चुनिंदा देशों की कतार में शामिल हो गया है जो अंतरिक्ष में अपने दुश्मन को निशाना बना सकते हैं.
भारत के इस परीक्षण से चीन को भी सख्त संदेश दिया गया है कि अब भारत अंतरिक्ष में भी चीन का मुकाबला करने की क्षमता रखता है. भारत ने लो ऑर्बिट में ASAT से सेटेलाइट को मार गिराया है. यह वही इलाका है जहां से पृथ्वी का सर्वेक्षण करने वाले अधिकतर सेटेलाइट काम करते हैं. इसमें नैविगेशन, जासूसी व अन्य सेटेलाइट भी शामिल होते हैं.
भारत इस क्षमता के साथ अंतरिक्ष में दुश्मन देशों के कम्युनिकेशन और सर्विलांस सेटेलाइट को तबाह कर उसकी आंख-कान छीन सकता है.
भारत के ASAT परीक्षण के बाद कई विश्लषकों ने आशंका जताई है कि दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों भारत-चीन की दुश्मनी अब अंतरिक्ष में पहुंच गई है.

जापान की होकाइडो यूनिवर्सिटी के अंतराष्ट्रीय संबंध विषय के प्रोफेसर और अंतरिक्ष सुरक्षा के विशेषज्ञ काजूतो सुजुकी ने न्यू यॉर्क टाइम्स से बातचीत में कहा, "भारत का परीक्षण साफ तौर पर चीन के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन था. इस तकनीक का विस्तार अंतरिक्ष में अस्थिरता पैदा कर सकता है."सेटेलाइट मार गिराना इतना आसान काम नहीं है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जिस सेटेलाइट को भारत ने मार गिराया है, वह पृथ्वी के नजदीक 17,000 मील प्रति घंटा की रफ्तार से चक्कर लगा रहा था. एयर फोर्स स्पेस कमांड के वाइस कमांडर जनरल थॉम्पसन ने बताया, भारत ने परीक्षण में टारगेट पर निशाना लगाया और सेटेलाइट के 270 टुकड़े हो गए. उन्होंने कहा कि फिलहाल अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन को कोई खतरा नहीं है.
दिल्ली डिफेंस रीव्यू मैगजीन के एडिटर सौरव झा ने न्यू यॉर्क टाइम्स से कहा, सेटेलाइट को मार गिराना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. यह उतना ही महत्वपूर्ण है जितना भारत का पहला परमाणु परीक्षण.
भारत ने 1975 में अपना पहला सेटेलाइट लॉन्च किया था जिसके बाद से देश ने लगातार अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रगति की है. 1984 में भारत ने रूस के साथ मिलकर अंतरिक्ष पर इंसान को उतारा. 2013 में भारत ने अपना मंगलयान भेजा. दिसंबर, 2018 में भारत ने अंतरिक्ष में सबसे भारी कम्युनिकेशन सेटेलाइट भेजा जिसका वजन करीब 5000 पाउंड था. 

चीन भी सेटेलाइट और अंतरिक्ष की दुनिया में तेजी से तरक्की कर रहा है और भारत इस दौड़ में पीछे नहीं छूटना चाहता है. झा ने कहा, यह परीक्षण भारत-चीन दुश्मनी से ही सबसे ज्यादा प्रेरित है.
चीन ने 12 साल पहले 2007 में एंटीसेटेलाइट मिसाइल का परीक्षण किया था जिसके बाद पूरी दुनिया को अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ शुरू होने की चिंता सताने लगी थी. 

दिसंबर 2018 में चीन ने हॉन्गयुन प्रोजेक्ट के तहत लो ऑर्बिट अर्थ सेटेलाइट लॉन्च किया था जिसके तहत चीन की 2025 तक 156 सेटेलाइट भेजने की योजना है. इस परीक्षण का मकसद बड़े पैमाने पर पाकिस्तान समेत कई देशों को इंटरनेट, नैविगेशन और कम्युनिकेशन सर्विस मुहैया कराना है. 

भारत ने परीक्षण कर साबित कर दिया है कि उसके पास अब अंतरिक्ष में चीनी पूंजी को निशाना बनाने का विकल्प है. चीन ने लो अर्थ ऑर्बिट सेटेलाइट भेजने की योजना ASAT परीक्षण करने के बाद ही बनाई. यूएस की आपत्ति के बावजूद चीन अंतरिक्ष में ASAT हथियारों का जखीरा जमा करने में लगा हुआ है.
2014 में यूएन कॉन्फ्रेंस में बीजिंग रूस के साथ मिलकर अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ शुरू होने से रोकने के लिए PPWT (Treaty on the Prevention of the Placement of Weapons in Outer Space) को लागू कराने के लिए आगे आया था लेकिन अमेरिका ने इसका यह कहकर विरोध किया था कि इसमें ASAT परीक्षण को शामिल नहीं किया गया.

चीन अपनी जरूरत खत्म होने के बाद किसी भी वक्त ASAT परीक्षण पर बैन लगाने के लिए राजी हो सकता है. अगर भारत परीक्षण नहीं करता तो चीन बिना किसी चुनौती के लो ऑर्बिट सेटेलाइट लॉन्च करके व्यावसायिक लाभ उठाता. परमाणु हथियारों की तरह कई देशों के पास ASAT तकनीक उपलब्ध है लेकिन परीक्षण करने से यह साबित हो जाता है कि उसके पास विश्वसनीय रक्षातंत्र मौजूद है.
भारत के परीक्षण में दूसरा फैक्टर पड़ोसी देश पाकिस्तान भी है. पिछले साल चीन ने पाकिस्तान की रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट लॉन्च करने में मदद की थी. भारत ने संकेत दे दिया है कि वह अंतरिक्ष में पाकिस्तान की आंख छीन सकता है और उसके सेटेलाइट को कचरे में तब्दील कर सकता है.
इस परीक्षण के साथ पाकिस्तान से संघर्ष की स्थिति में भारत का पलड़ा भारी हो गया है. अभी तक दोनों देश पहले हमला ना करने की नीति पर अमल करते आए हैं.

लेकिन कुछ विश्लषकों का मानना है कि भारत अब दुश्मन के सक्रिय होने से पहले ही पाकिस्तान की सेटेलाइट पर हमला कर सकता है. परमाणु हमले में दोनों तरफ का नुकसान होने का डर था लेकिन अंतरिक्ष में भारत के परीक्षण के साथ पाकिस्तान बिल्कुल हाशिये पर आ गया है.इससे भारत की परमाणु हमले को लेकर रणनीति भी बदल सकती है. भारत ने हमेशा वादा किया है कि वह कभी भी किसी देश के खिलाफ पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा. इस सिद्धांत का मतलब है कि परमाणु हमले का जवाब देने से पहले भारत अपने एक या दो शहर गंवा सकता है. लेकिन अब अगर भारत अपनी नई एंटी सेटेलाइट तकनीक को एंटीमिसाइल डिफेंस में इस्तेमाल करने में सक्षम होता है तो रणनीतिक संतुलन की स्थिति बिल्कुल बदल जाएगी.
झा के मुताबिक, अब कोई चाहे या ना चाहे, अंतरिक्ष का सैन्यकरण शुरू हो चुका है. आज के समय में सेटेलाइट तकनीक पूरी दुनिया के कम्युनिकेशन नेटवर्क की रीढ़ की हड्डी बन चुकी है.

कई विश्लषकों का कहना है कि चीन, यूएस और रूस अंतरिक्ष में निशस्त्रीकरण संधि पर चर्चा कर रहे हैं और मिशन शक्ति के बाद इसमें भारत की भी भूमिका होगी.
अंतरिक्ष में शक्ति प्रदर्शन की टाइमिंग को लेकर भले ही सवाल खड़े हो रहे हों लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऐलान के साथ उस धारणा को मजबूत करने की कोशिश की है कि वह भारत के चौकीदार हैं. अंतरिक्ष में चौकन्ना दिखने से उनकी यह छवि और मजबूत हुई है.
 

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