मगहर: जो व्यक्ति यहां मरता था वो नरक चला जाता था!

एक वक्त ऐसा था जब मगहर को लेकर लोगों के मन में इतना डर था कि वह जीवन में अंतिम पड़ाव पर वहां जाने से भी डरते थे। क्योंकि वर्षों से यही बात लोगों के जेहन में थी कि मगहर में मरने से नरक मिलता है। इस डर को खत्म करने के लिए कबीर जीवन के अंतिम दिनों में मगहर चले गए और वहीं आखिरी सांस ली।

मगहर में संत कबीर दास की समाधि और मजार अगल-बगल में स्थित हैं। दरअसल, कबीर के जन्म के सही समय और उनके धर्म को लेकर कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। मुस्लिम उन्हें मुसलमान मानते थे तो हिंदू उन्हें सनातन धर्मी मानते थे।

कबीर ने धार्मिक विश्वासों और ईश्वर के स्थान, धार्मिक कट्टरता की मानसिकता पर कुठाराघात करते हुए कहा…


‘मोको कहां ढूढ़ें रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।


न मैं देवल, न मैं मस्जिद, न काबे कैलास में।।’

कबीर की समाधि और मजार की दीवार आपस में जुड़ी हुई है। मंदिर में जहां फूल-माला चढ़ाकर और घंटे बजाकर पूजा की जाती है, वहीं मजार में चादर चढ़ती है।

संतकबीर नगर मुख्यालय से मगहर की तरफ चलने पर आमी नदी के किनारे पर एक गुफा है। इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि कबीर दास इसी गुफा में बैठकर ध्यान साधना किया करते थे।

कबीर के देहांत के बारे में एक कहानी प्रचलित है कि जब कबीर ने शरीर त्याग दिया तो उनके हिंदू और मुस्लिम शिष्य इस बात को लेकर झगड़ने लगे कि उनका अंतिम संस्कार किस विधि से किया जाएगा। मुस्लिम उन्हें दफनाना चाहते थे तो हिंदू उनका दाह संस्कार करना चाहते थे।

आपसी कहासुनी के बीच जब कबीर के शरीर की चादर खिसकी तो वहां कबीर का शरीर नहीं बल्कि फूल थे। फिर आधे-आधे फूल लेकर हिंदू और मुसलमानों ने अपने-अपने तरीके से कबीर का अंतिम संस्कार किया। पूर्व राष्ट्रपति और स्वर्गीय श्री एपीजे अब्दुल कलाम मगहर को अंतराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बनाना चाहते थे।


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