मांगें पूरी या मजबूरी? महज आश्वासन पर खत्म कर दिया अन्ना ने अपना अनशन
नई दिल्ली सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने पिछले 7 दिनों से जारी अपना अनशन गुरुवार शाम को खत्म कर दिया है. अनशन खत्म करते हुए अन्ना ने कहा कि सरकार ने उनकी मांगें मान ली हैं. वहीं, अन्ना ने धमकी दी कि अगर सरकार 6 महीने में इन मांगों पर कार्रवाई नहीं करती है तो वे फिर भूख हड़ताल करेंगे. अन्ना और उनके लोग इसे अपनी जीत बता रहे हैं, हालांकि अगर अन्ना के इस आंदोलन की तुलना उनके 2011 में दिल्ली और मुंबई के आंदोलन से करें तो यह काफी फीकी साबित हुई. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि मजबूरी में तो अन्ना ने आंदोलन खत्म नहीं किया. जानें ऐसी वजहें जो इस ओर इशारा कर रही है:
बजट में हो चुकी है एमएसपी बढ़ाने की घोषणा
अन्ना ने जिन मांगों को लेकर केंद्र सरकार द्वारा हामी भरने की बात कह रहे हैं, वे मांगें तो खुद केंद्र सरकार काफी पहले ही मान चुकी है. अन्ना ने कहा कि केंद्र सरकार ने उनकी यह मांग मान ली कि कृषि उपज की लागत के आधार पर डेढ़ गुना ज्यादा दाम (MSP) मिले. आपको बता दें कि वित्त मंत्री के तौर पर अपना चौथा बजट पेश करते हुए अरुण जेटली ने ऐलान किया था कि वे उनकी पार्टी द्वारा 2014 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने के वादे को पूरा कर रहे हैं. ऐसे में सरकार द्वारा यह मांग मान लेना कहना, एक तरह से छलावा ही है.
लोकपाल पर 4 साल से सरकार दे रही है आश्वासन
अन्ना ने कहा कि केंद्र ने यह भी आश्वासन दिया है कि वह जल्द लोकपाल की नियुक्ति को लेकर निर्णय लेगी. आपको बता दें कि 2014 में चुने जाने के बाद से ही मोदी सरकार लोकपाल की नियुक्ति को लेकर आश्वासन दे रही है. वहीं, हाल में ही केंद्र सरकार 1 मार्च को लोकपाल की नियुक्ति को लेकर सेलेक्शन कमेटी की बैठक की है. लोकपाल की सेलेक्शन कमेटी में पीएम मोदी, लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन, देश के मुख्य न्यायधीश और लोकसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हैं. अन्ना का कहा कि सरकार ने उनकी मांगें मान ली है कि उस धारा को हटाया जाए कि लोकपाल प्रधानमंत्री, एमपी, एमएलए और कैबिनेट मिनिस्टर की जांच नहीं कर सकता. अन्ना के अनुसार सरकार के प्रतिनिधियों ने कहा है कि इस बारे में लोकसभा में संशोधन का प्रस्ताव आएगा.
सरकार ने नहीं दी कोई तवज्जो
2011 के अन्ना आंदोलन के दौरान तत्कालीन यूपीए सरकार लगातार अन्ना और उनके आंदोलन की कमेटी से बातचीत कर रही थी. उस समय लगातार केंद्र सरकार का प्रयास था कि अन्ना आंदोलन तोड़ दें. यूपीए के कई मंत्री लगातार अन्ना से बात कर रहे थे और आंदोलन पर नजर बनाए हुए थे. साथ ही यूपीए सरकार को अन्ना की कई मांगों के सामने झुकना भी पड़ा था. हालांकि इस बार ऐसा कोई नजारा नहीं दिखा. पीएमओ की ओर से अन्ना के आंदोलन को खत्म करने को लेकर कुछ प्रयास जरूर हुए, लेकिन कोई भी मंत्री या नेता अन्ना के इस आंदोलन पर न पहुंचा और न ही कोई बयान देता दिखाई दिया. अन्ना का आंदोलन खत्म कराने भी उनके गृह राज्य महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पहुंचे.
विपक्ष का नहीं मिला साथ
इस समय मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष केंद्र के साथ साथ कई राज्यों में भी पूरजोर तरीके से विरोध कर रहा है. संसद में राफेल डील, आंध्र विशेष पैकेज, कावेरी मुद्दे, किसान आंदोलन, SSC पेपर लीक जैसे मुद्दों विपक्ष पर हमलावर बना हुआ है. हालांकि विपक्ष अन्ना की मांगों और न ही उसके आंदोलन से खुद जोड़ रहा है. कोई भी नेता अन्ना के साथ मंच साझा करने नहीं पहुंचा. यहां तक कि केंद्र सरकार के विरुद्ध मोर्चा बनाने में जुटीं पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी दिल्ली पहुंचीं तो उन्होंने भी अन्ना के आंदोलन में पहुंचने की कोशिश नहीं की. जबकि अन्ना 2014 में ममता के समर्थन में आवाज उठा चुके थे.
2011 के आंदोलन से सीख लेते हुए अन्ना हजारे ने इस बार पहले ही साफ कर दिया था कि जो कि उनके साथ इस आंदोलन का हिस्सा बनेंगे वो कभी राजनीति में नहीं जाएंगे. यही वजह है कि अब तक अन्ना के मंच पर राजनीतिक हस्तियां नजर नहीं आई. हार्दिक पटेल ने भी आंदोलन को समर्थन तो दिया, लेकिन अन्ना से मिलने नहीं पहुंचे.
लोग भी रहे आंदोलन से दूर
अन्ना के आंदोलन को 2011 जैसा जन समर्थन मिलता भी दिखाई नहीं दिया. 2011 में अन्ना आंदोलन से कई संस्था और लाखों लोग जुड़े थे. दिल्ली के साथ देश के अन्य हिस्सों में भी लोगों ने भूख हड़ताल कर इस आंदोलन को समर्थन दिया था. हालांकि इस बार नजारा उल्टा था. अन्ना को अपने टेंट को ही भरने में सफलता नहीं मिली. वहीं अन्ना जिन किसानों की मांगों को भी शामिल कर यह आंदोलन कर रहे थे, उनके ही कई संगठनों ने इस आंदोलन से दूरी बनाई थी. अगर ऐसा नहीं होता तो जो किसान महाराष्ट्र में पदयात्रा कर पूरे देश का ध्यान खींच रहे थे, अपने ही महाराष्ट्र के जननेता के आंदोलन के लिए दिल्ली नहीं पहुंचते. लोगों की इस आंदोलन में भागीदारी नहीं होने से भी अन्ना को इस आंदोलन की हैसियत समझ में आ गई. पिछली बार जहां सोशल मीडिया पर अन्ना के आंदोलन को काफी समर्थन मिला था, लेकिन इस बार तो उनके आंदोलन का मजाक बनाया जा रहा था. अन्ना ने इसे लेकर अपना दर्द भी जाहिर किया था.
इन वादों का क्या?
अन्ना आंदोलन शुरू करते हुए यह मांग की थी कि खेती पर निर्भर 60 साल से ऊपर उम्र वाले किसानों को प्रतिमाह 5 हजार रुपये पेंशन मिले. कृषि मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा तथा सम्पूर्ण स्वायत्तता मिले. इस पर कुछ नहीं कहा गया. वहीं, अन्ना ने तो साफ मांग की थी कि लोकपाल विधेयक पारित हो और लोकपाल कानून तुरंत लागू किया जाए. हर राज्य में सक्षम लोकायुक्त नियुक्त किया जाए. हालांकि बस आश्वासन पर उन्होंने आंदोलन खत्म कर दिया.