यदि श्राद्ध पक्ष में किए गए धर्म-कर्म को पाखंड मानते हैं, तो यह खबर आपके लिए है

एक दिन की बात है। एक इंजीनियर साहब चहकते हुए आए और साथी कर्मचारी को एक 'व्हाट्सएप' कहानी सुनाने लगे। इसमें लिखा था-एक पंडितजी को नदी में तर्पण करते देख एक फकीर अपनी बाल्टी से पानी गिराकर जाप करने लगा। मेरी प्यासी गाय को पानी मिले। पंडितजी के पूछने पर फकीर बोला- जब आपके द्वारा चढ़ाया गया जल आपके पुरखों को मिल जाता है, तो मेरी गाय को भी पानी मिल जाएगा। इस पर पंडितजी बहुत लज्जित हुए।

कहानी सुनाकर इंजीनियर साहब जोर से ठठाकर हंसने लगे। बोले – "सब पाखण्ड है, भाई।"
खैर साथी कर्मचारी ने कुछ नहीं कहा, बस सामने मेज पर रखे 'कैलकुलेटर' को उठाकर एक नंबर डायल किया और कान से लगा लिया। बात नही हुई तो इंजीनियर साहब से शिकायत की। इस पर इंजीनियर साहब भड़क गए।

बोले- ये क्या मजाक है? 'कैलकुलेटर ' में मोबाइल का फंक्शन कैसे काम करेगा। तब उनके साथी कर्मचारी ने कहा कि ठीक वैसे ही स्थूल शरीर छोड़ चुके लोगों के लिए बनी व्यवस्था, जीवित प्राणियों पर कैसे काम करेगी।
साहब झेंप मिटाते हुए कहने लगे- "ये सब पाखंड है, अगर सच है, तो सिद्ध करके दिखाइए।" साथी कर्मचारी ने कहा कि ये सब छोड़िए, आप बताइए न्युक्लियस पर न्युट्रान की बमबारी करने से क्या ऊर्जा निकलती है?

इंजीनियर साबह बोले- "बिल्कुल, इट्स कॉल्ड एटॉमिक एनर्जी।" यानी बिल्कुल, ऊर्जा तो निकलती है और उसे परमाणु ऊर्जा कहते हैं।
इस पर साथी कर्मचारी ने उन्हें एक चॉक और पेपरवेट देकर कहा, अब आपके हाथ में बहुत सारे न्यूक्लीयर हैं और न्युट्रांस भी। इससे एनर्जी निकाल के दिखाइए। इंजीनियर साहब समझ गए कि वे किस कुतर्क को लेकर मजाक बना रहे थे।

दोस्तों यदि हम किसी विषय/तथ्य को प्रत्यक्षतः सिद्ध नहीं कर सकते, तो इसका अर्थ है कि हमारे पास समुचित ज्ञान, संसाधन या अनुकूल परिस्थितियां नहीं है। इसका यह अर्थ नहीं है कि वह तथ्य ही गलत है।
हमारे द्वारा श्रद्धा से किए गए सभी कर्म, दान आदि आध्यात्मिक ऊर्जा के रूप में पितरों तक पहुंचते हैं। कुतर्कों में फंसकर अपने धर्म व संस्कार के प्रति कुंठा न पालें।
 

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