‘शादी नहीं देती पति को रेप करने का लाइसेंस’

नई दिल्ली .  दिल्ली हाई कोर्ट में वैवाहिक बलात्कार (मैरिटल रेप) मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि शादी के बाद पति को इस बात का लाइसेंस नहीं मिल जाता कि वह पत्नी का रेप करे। शादीशुदा महिला का भी अपने शरीर पर वही अधिकार होता है, जो एक अविवाहित महिला का होता है।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने बुधवार को कहा कि शादी का मतलब ये नहीं है कि पति की डिमांड पर उसे यौन संबंध का अधिकार मिल जाए। शादी के लाइसेंस को इस तरह नहीं देखा जा सकता कि पति को इस बात के लिए लाइसेंस मिल गया है कि वह पत्नी के साथ जबरन सेक्स संबंध बनाए।

वहीं मैरिटल रेप मामले में हाई कोर्ट ने फोरम टु इंगेज मेन (एफईएम) नामक संगठन को बतौर पक्षकार दलील पेश करने की इजाजत दे दी है, जिसने मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की बात कही है। हाई कोर्ट की कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल की अगुवाई वाली बेंच के सामने दलील दी गई कि रेप की परिभाषा के उस प्रावधान को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया जाए, जिसमें पति को मैरिटल रेप के मामले में अपवाद के तौर पर छूट मिली हुई है।

कानून के तहत 15 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी के साथ संबंध रेप नहीं है और इस प्रावधान को चुनौती दी गई है और इसे अपराध की श्रेणी में लाने की दलील दी गई है।

 

याचिकाकर्ता के मुताबिक, कानून में पत्नियों को 'ना' कहने का अधिकार नहीं है और ही सहमति से 'हां' कहने का अधिकार दिया गया है। शादी दो लोगों की बराबरी की बात करता है, लेकिन आदमी को यहां वरीयता दी गई है। लगातार सेक्सुअल हिंसा मानवाधिकार का हनन है। इसे क्राइम की संज्ञा दी जानी चाहिए।

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