षष्ठी देवी: भक्तों को वरदान देने वाली कात्यायनी

चैत्र नवरात्र में माता दुर्गा के षष्ठी रूप माता कात्यायनी की पूजा की जाती है। धार्मिक शास्त्र अनुसार महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छा के अनुसार ही उन्हें पुत्री के रूप मे देवी प्राप्त हुईं थी। महर्षि कात्यायन ने इनका पालन-पोषण किया इसीलये इस देवी को कात्यायनी कहा गया। माता कात्यायनी की उपासना का मंत्र, ''चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना। कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि।।'' जहां तक माता कात्यायनी के स्वरुप की बात है तो इनका स्वरूप अत्यंत दिव्य ओर स्वर्ण के समान चमकीला है। माता सिंह पर विराजमान होती हैं। इनकी चार भुजाएं भक्तो को वरदान देती है, इनका एक हाथ अभय मुद्रा मे है तो दूसरा हाथ वर मुद्रा मे दिखाई देता है। अन्य हाथो मे तलवार तथा कमल का फूल है। 
चैत्र नवरात्र में माता कात्यायनी की भक्ति से साधक को बड़ी सरलता से अर्थ की प्राप्ति होती है और इसके साथ ही धर्म, काम और मोक्ष का फल भी प्रदान करती है। व्यक्ति इस लोक मे रहकर भी आलोकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है। ऐसे साधक शोक, संताप, डर से मुक्त होता है तथा सर्वथा के लिए उसके दुखो का अंत होता है। पुण्य वाले कार्यो मे आने वाली वाधा की समस्याए भी दूर होती है।  आय के साधनो मे भी वृद्धि होती है ओर बेरोज़गारो को रोज़गार मिलता है। 
माता कात्यायनी की पूजा मे उपयोग आने वाली वस्तुओं में प्रमुखत: मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन प्रसाद में मधु यानी शहद का प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रभाव से साधक को सुंदर रूप प्राप्त होता है।

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