संघ प्रमुख भागवत बोले- सफलता और असफलता अंतिम नहीं; काम जारी रखने का साहस मायने रखता है

नागपुर 'हम जीतेंगे: पॉजिटिविटी अनलिमिटेड' व्याख्यान शृंखला के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को संबोधित किया। यह कार्यक्रम कोविड रिस्पॉन्स टीम दिल्ली की ओर से किया जा रहा है। 11 मई से चल रहे इस कार्यक्रम का शनिवार को आखिरी दिन है। इसमें भागवत ने कोरोना के हालात पर चर्चा करने के साथ ही कहा कि सफलता और असफलता अंतिम नहीं है। काम जारी रखने का साहस मायने रखता है

मोहन भागवत के स्पीच की 9 अहम बातें…

1.अभी अपने आपको संभालने का वक्त है

अभी सकारात्मकता पर बात करना बहुत कठिन है, क्योंकि समय बहुत कठिन चल रहा है। अनेक परिवारों में कोई अपने, कोई आत्मीय बिछड़ गए हैं। अनेक परिवारों में तो भरण-पोषण करने वाला ही चला गया। 10 दिन में जो था, वह नहीं था हो गया। अपनों के जाने का दुख और भविष्य में खड़ी होने वाली समस्याओं की चिंता ऐसी दुविधा में तो परामर्श देने के बजाए पहले सांत्वना देना चाहिए। यह सांत्वना के परे दुख है। इसमें तो अपने आप को ही संभालना पड़ता है।

2. हमें अभी नकारात्मकता नहीं चाहिए

इस समय संघ के स्वयंसेवक समाज की जरूरतें पूरी करने के लिए अपनी क्षमता के अनुसार सक्रिय हैं। ये कठिन समय है। अपने लोग चले गए। उन्हें ऐसे असमय नहीं जाना था। परंतु अब तो कुछ नहीं कर सकते। अब तो इस परिस्थिति में हम हैं। जो चले गए, वे तो चले गए। उन्हें इस परिस्थिति का सामना नहीं करना है। हमें करना है। हमें अपने आपको सभी को सुरक्षित रखना है। इसलिए हमें नकारात्मकता नहीं चाहिए। सब कुछ ठीक है, ऐसा हम नहीं कह रहे हैं। परिस्थिति दुखमय है। मनुष्य को व्याकुल और निराश करने वाली है।

3. मन थक गया तो सांप के सामने चूहे जैसी स्थिति हो जाएगी

सबसे पहले बात मन की है। मन अगर हमारा थक गया, हार गया तो सांप के सामने चूहा जैसे हो जाता है, कुछ करता नहीं अपने बचाव के लिए ऐसी हमारी स्थिति हो जाएगी। हमें ऐसी स्थिति नहीं होने देनी है। हम कर रहे हैं। जितना दुख है उतनी ही आशा है। समाज पर संकट है। यह निराशा की परिस्थिति नहीं है। लड़ने की परिस्थिति है। क्या ये निराशा, रोज 10-5 अपरिचित लोगों के जाने के समाचार सुनना। मीडिया के माध्यम से परिस्थिति बहुत विकराल है इसका घोष सुनना, ये हमारे मन को कटु बनाएगा। ऐसा होने से विनाश ही होगा। ऐसी मुश्किलों को लांघकर मानवता आगे बढ़ी है।

4. जीवन-मरण का चक्र चलता रहता है

विपत्ति आती है तो हमारी प्रवृत्ति क्या होती है। हम जानते हैं कि ये जीवन मरण का चक्र चलता रहता है। मनुष्य पुराना शरीर छोड़कर नया शरीर धारण करता है। हम ऐसा मानने वाले लोग हैं। हमें ये बातें डरा नहीं सकतीं। ब्रिटेन के प्रधान मंत्री बने चर्चिल। उनकी टेबल पर एक वाक्य लिखा रहता था। हम हार की चर्चा में बिल्कुल रुचि नहीं रखते, क्योंकि हमारी हार नहीं होने वाली। हमें जीतना है। चर्चिल जीते भी। इसी भरोसे से ब्रिटेन की जनता ने शत्रु को परास्त किया। वे निराश नहीं हुए।

5. हमारी गफलत की वजह से संकट आया

हमें भी संकल्प करके इस चुनौती से लड़ना है। संपूर्ण विजय पाने तक प्रयास करना है। पहली लहर जाने के बाद हम सब जरा गफलत में आ गए। क्या जनता, क्या शासन, क्या प्रशासन। डॉक्टर लोग इशारा दे रहे थे। फिर भी थोड़ी गफलत में आ गए। इसलिए ये संकट खड़ा हुआ। अब तीसरी लहर की चर्चा है। इससे डर जाएं क्या? डरना नहीं है। उससे लड़ने की तैयारी करनी है। इसी की जरूरत है। समुद्र मंथन के समय कितने ही रत्न निकले। उनके आकर्षण से प्रयास नहीं रुके। हलाहल से भी प्रयास नहीं रुके। अमृत प्राप्ति होने तक प्रयास होते रहे।

6. हमें मिलकर काम करना है

हमें ऐसा करना है। सारे भेद भूलकर, गुण दोष की चर्चा छोड़कर सभी को मिलकर काम करना है। देर से जागे तो कोई बात नहीं। सामूहिकता के बल पर हम अपनी गति बढ़ाकर आगे निकल सकते हैं। निकलना चाहिए। कैसे करना है। पहले अपने को ठीक रखें। इसके लिए जरूरी है -संकल्प की मजबूती। दूसरी बात है सजग रहना। सजग रहकर ही अच्छा बचाव हो सकता है। शुद्ध आहार लेना जरूरी है, लेकिन इसकी जानकारी लेना है। कोई कहता है, इसलिए नहीं मान लेना है। अपना अनुभव और उसके पीछे के वैज्ञानिक तर्क की परीक्षा करना चाहिए। हमारी तरफ से कोई बेसिरपैर की बात समाज में न जाए। समाज में चल रही है तो हम बलि न बनें।

7. खाली नहीं रहना है, कुछ सीखते रहिए

सावधानी रखकर ऐसे उपचार और आहार का सेवन करना है। विहार का भी ध्यान रखना है। खाली मत रहिए। कुछ नया सीखिए। परिवार के साथ गपशप कीजिए। बच्चों के साथ संवाद कीजिए। मास्क पहनना है। पर्याप्त अंतर पर रहकर एक दूसरे से संबंध रखना अनिवार्य है। वैसे ही सफाई का ध्यान रखना। सैनिटाइजर इस्तेमाल करते रहना। सारी बातें मालूम हैं हमें, लेकिन अनदेखी होती है, असावधानी होती है। कुछ लोग कोरोना की पॉजिटिविटी बदनामी मानकर छिपाकर रखते हैं। जल्दी इलाज नहीं कराते। समय पर इलाज होता है तो कम दवाओं में ही इस बीमारी से बाहर आ सकते हैं।

8. यह हमारे धैर्य की परीक्षा है

आने वाली परिस्थिति की चर्चा हो रही है, यह पैनिक क्रिएट करने के लिए नहीं है। वह तो आगाह किया जा रहा है तैयारी के लिए। नियम के साथ चलें। ऐसा हम करेंगे तो आगे बढ़ेंगे। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं, हमारी ऐसा देश है हमारा। इतने भयानक संकट झेलकर मिटा नहीं तो होगी महामारी। छिपा शत्रु होगा। कठिन जंग लड़नी होगी लेकिन लड़नी होगी। जीतनी होगी। परिस्थिति आई है, यह हमारे सद्गुणों की परख करेगी। हमारे दोषों को भी दिखा देगी। दोषों को दूर करके, सद्गुणों को बढ़ाकर यह परिस्थिति ही हमें प्रशिक्षित करेगी। यह हमारे धैर्य की परीक्षा है। याद रखिए यश अपयश का खेल चलते रहता है।

9. बच्चे पिछड़ न जाएं, इसकी चिंता करनी है

बच्चों की शिक्षा पिछड़ने का यह दूसरा वर्ष होगा। अनौपचारिक शिक्षा के माध्यम से, उनकी परीक्षा होगी या नहीं, प्रमोट होंगे या नहीं, इसकी चिंता छोड़कर, वे जो ज्ञान 2 साल में प्राप्त करने वाले थे, उसमें पिछड़ न जाएं, समाज के तौर पर इतनी चिंता हमें करनी चाहिए। कई लोगों का रोजगार चला गया है। रोज काम करके कमाने वाले भूखे न रहें। उनकी सुधि लेनी है।

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