संतान की लंबी आयु के लिए माताएं सकट चौथ पर जरूर सुनें गणेश कथा

प्रत्येक माह की चतुर्थी श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। अपनी संतान की मंगलकामना के लिए महिलाएं माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को व्रत रखती है।

इसे संकष्टी चतुर्थी, लंबोदर संकष्टी चतुर्थी,तिलकुटा चौथ एवं माघी चौथ के नाम से जाना जाता है। इस दिन विघ्नहर्ता श्री गणेशजी, चौथ माता व चंद्रदेव की विधिपूर्वक पूजा अर्चना का विधान है। नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गजानन की आराधना से सुख-सौभाग्य में वृद्धि तथा घर-परिवार पर आ रही विघ्न-बाधाओं से मुक्ति मिलती है एवं रुके हुए मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं। इस तिथि में गणेश जी की पूजा भालचंद्र नाम से भी की जाती है। इस चतुर्थी में चन्द्रमा के दर्शन करने से गणेश जी के दर्शन का पुण्य फल मिलता है। इस दिन स्त्रियां अपने संतान की दीर्घायु और सफलता के लिये व्रत करतीं है एवं कथा सुनती है। आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी की क्या हैं पौराणिक कथाएं।

क्या कहती है कथा-
एक प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के राज में एक कुम्हार रहा करता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आवा लगाया, पर बहुत देर तक आवा पका नहीं। बार-बार नुकसान होता देखकर कुम्हार एक तांत्रिक के पास गया और उसने तांत्रिक से मदद मांगी। तांत्रिक ने उसे एक बालक की बली देने के लिए कहा। उसके कहने पर कुम्हार ने एक छोटे बच्चे को आवा में डाल दिया, उस दिन संकष्टी चतुर्थी थी। उस बालक की मां ने अपनी संतान के प्राणों की रक्षा के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना की। कुम्हार जब अपने बर्तनों को देखने गया तो उसे बर्तन पके हुए मिले और साथ ही बालक भी सुरक्षित मिला। इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और उसने राजा के सामने पूरी कहानी सुनाई। इसके बाद राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाली सकट चौथ की महिमा का गुणगान किया। तभी से महिलाएं अपनी संतान और अपने परिवार की कुशलता और सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं।

कैसे शुरू हुआ व्रत-
पुराणों के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वे मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेश जी भी बैठे थे। देवताओं की विनती सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान भोलेनाथ ने दोनों पुत्रों की परीक्षा लेते हुए कहा की तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा। भगवान शिव के मुख से ये वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। परन्तु गणेशजी विचारमग्न हो गए कि वे चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक युक्ति सूझी। गणेशजी अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता की सात परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब भगवान शिव ने गजानन से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का रहस्य पूछा। तब गणेश जी ने कहा-'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं'।यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी और गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप ,दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे ।व्रती के सभी कष्ट दूर होकर उसे जीवन में हर प्रकार की सुख-समृद्धि प्राप्त होगी। इस व्रत को करने वाले को अपने सामर्थ्य के अनुसार गरीबों को तिल गुड के लड्डू,कम्बल या कपडे आदि का दान देना चाहिए।

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