30 साल से गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं रघुराम राजन के गुरु, नहीं लेंगे पद्म पुरस्कार
केंद्र सरकार आज शाम को पद्म पुरस्कारों का एलान करेगी. हर साल 26 जनवरी के मौके पर दिए जाने पद्म पुरस्कार देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक है. बताया जा रहा है कि सरकार इस बार ऐसे लोगों को सम्मानित करने का मन बना रही है, जो गुमनामी में रहकर समाज के लिए काम कर रहे हैं.
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, सरकार इस बार करीब 120 लोगों को पद्म पुरस्कार से नवाजने जा रही हैं. इस सूची में मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में पिछले 30 साल से गुमनामी में रहकर सामाजिक कार्यों में जुटे आलोक सागर का नाम भी शामिल बताया जा रहा है.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के गुरु और पूर्व आईआईटियन आलोक सागर 30 सालों से बैतूल की शाहपुर तहसील के छोटे से गांव कोचामऊ में आदिवासियों के बीच रहकर उनकी शिक्षा, पर्यावरण और सामाजिक समानता जैसे मुद्दों पर काम कर रहे हैं.
दिल्ली आईआईटी में बतौर प्रोफेसर भी सेवाएं दे चुके आलोक सागर ने साफ कर दिया है कि वह यह सम्मान ग्रहण नहीं करेंगे. न्यूज 18 संवाददाता रिशु नायडू से खास बातचीत में उन्होंने कहा कि वह मानव की समानता के लिए कार्य कर रहे हैं. वह ऐसा कोई पुरस्कार ग्रहण नहीं करेंगे, जिससे उनके आसपास के लोगों के बीच असमानता की भावना उत्पन होती हो.
कलयुग का गांधी
आलोक सागर को जानने वाले लोग उन्हें कलयुग का गांधी तक कहते हैं क्योंकि आलोक सागर ने पिछले 30 साल से विदेशी वस्तुओं और पूंजीवाद का कड़ा विरोध किया है. आलोक सागर की सोच है कि हम प्रकृति से सबकुछ ले रहे हैं लेकिन प्रकृति को क्या देते हैं इसका हिसाब होना चाहिए. वो गांव में आदिवासियों को पढ़ाते हैं, उन्हें पर्यावरण को बचाने के कारगर तरीके बताते हैं और खुद भी अधिकतर साइकिल से ही घूमते हैं.
आलीशान बंगला छोड़कर झोपड़ी को बनाया आशियाना
मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले आलोक सागर ने दिल्ली में अपना आलीशान घर छोड़ दिया और 30 साल से एक मिट्टी और घासफूस से बनी झोपड़ी में रह रहे हैं. वो यहां सामाजिक गैरबराबरी दूर करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं.
आलोक सागर से जुड़ी खास बातें
-आलोक सागर के निजी जीवन की बात की जाए तो वो दिल्ली में करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं, लेकिन इसका असर उनकी जिंदगी पर कभी नहीं पड़ा.
-आलोक सागर आईआईटी दिल्ली से पढ़ने के बाद अमेरिका की टेक्सास यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाई करने गए.
-इसके बाद हेलिफेक्स कनाडा की डेलहोसी युनिवर्सिटी से मनोविज्ञान की पढ़ाई के 1980 में भारत वापस आए और फिर आईआईटी दिल्ली में ही बतौर प्रोफेसर एक साल तक नौकरी की.
-आलोक सागर दुनियाभर की कई भाषाएं लिखना पढ़ना जानते हैं. आदिवासी क्षेत्र में आने के बाद शुरुआती दिनों में उन्हें कुछ परेशानियां हुईं, लेकिन इसके बाद प्रतिभा के धनी आलोक सागर ने आदिवासियों की स्थानीय भाषाएं सीखीं और आज वो धारा प्रवाह गोंडी या कोरकू भाषाएं बोलते हैं.
-उन्होंने आदिवासियों को पढ़ना-लिखना सिखाया और उनके साथ मिलकर हरियाली यात्रा शुरू की.
-पिछले तीन सालों में आलोक सागर ने आसपास के जंगलों में लाखों पेड़ पौधे लगाएं हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां हरियाली से महरूम न रह जाएं.
-वो हमेशा साइकिल से ही घूमते हैं, जिससे प्रकृति को नुकसान न हो.
-इस महान शख्सियत की जिंदगी के तमाम पहलुओं का तब पता चला, जब पिछले साल घोड़ाडोंगरी विधानसभा में चुनाव होने पर बाहरी व्यक्तियों को खोजने का पुलिस ने अभियान चलाया था.
-बाहरी शख्स समझकर जब पूछताछ के लिए जब आलोक सागर को थाने बुलाया गया, तब मालूम चला कि जिस आलोक सागर को वो कोई सन्यासी समझते आए हैं वो असल में बहुमुखी प्रतिभा का धनी हैं और उन्होंने आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन जैसे दिग्गजों को पढ़ाया है.