संन्यास की दीक्षा लिए बाबा रामदेव को हुये 22 साल

देहरादून
1995 में रामनवमी के दिन हरिद्वार में संन्यास की दीक्षा लेने वाले बाबा रामदेव को बुधवार को संन्यास धारण किये 22साल हो गए। एक संन्यासी की आयु उसके संन्यास की तिथि से ही गिनी जाती है इसलिए बाबा रामदेव भी अपनी आयु संन्यास के दिन से ही गिनते हैं।

वैसे बाबा रामदेव का बचपन का असली नाम राम कृष्ण यादव है। घर-परिवार के लोग प्रेम से उन्हें रामकिशन बुलाते थे। करीब 50 साल के बाबा का जन्म हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के अली सैयद्पुर गांव में हुआ। उनका 22वां संन्यास दिवस बुधवार को उनके जन्मदिन के रूप में पतंजलि योग परिवार के श्रद्धालुओं के बीच पतंजलि में मनाया गया।

दो दशकों में ही बाबा ने समूचे विश्व में योग और आयुर्वेद में जो क्रांति की है, उसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिल सकती। रामकिशन के रूप में हरियाणा में जन्मे बाबा रामदेव जब घर छोड़कर ज्ञान प्राप्ति के लिए हिमालय गये तो वहीं उन्हें नेपाल मूल के आचार्य बालकृष्ण मिल गए। कुछ दिन हिमालय क्षेत्र में बिताने के बाद दोनों वर्ष 1993 में हरिद्वार आ गए तथा कनखल के बड़े अखाड़े में शरण ली।

अपनी योग विद्या से चर्चा में आये रामदेव को हरिद्वार में गंगा किनारे बसे कृपालु बाग आश्रम के स्वामी शंकरदेव ने अपने आश्रम में बुला लिया। संन्यास के प्रति गहरी रुचि और कई विषयों पर बाबा का ज्ञान देखकर गुरु शंकरदेव उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। 1995 की रामनवमी पर बाबा शंकरदेव के सान्निध्य में ही भगवा वस्त्र धारण करने के बाद बाबा रामदेव ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

आचार्य बालकृष्ण के साथ मिलकर वह योग और आयुर्वेद को इस मुकाम पर ले गये कि आज दुनिया के 140 देशों में भारत के आयुर्वेद की तूती बोलती है। संयुक्त राष्ट्र संघ सहित कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी बाबा को अपने यहां आमंत्रित कर योग के गुर सीखे। विदेशी सांसदों को योग सिखाने वाले बाबा रामदेव भारत के पहले संत बन गये हैं।

विश्वभर की जड़ी बूटियों पर जितना बड़ा काम आज पतंजलि योगपीठ में चल रहा है, उतना शायद पूरे देश में एकसाथ चला हो।

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