Ahoi Ashtami 2018: जानें कब है अहोई अष्टमी, शुभ मुहूर्त, कथा और पूजन विधि

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर अहोई अष्टमी पर्व मनाया जा रहा है। इस बार यह तिथि 31 अक्टूबर दिन शनिवार को है। शास्त्रों के अनुसार, अहोई अष्टमी व्रत उदय कालिक एवं प्रदोष व्यापिनी अष्टमी को करने का विधान है। दरअसल अहोई अष्टमी पर्व और व्रत का संबंध माता पार्वती के अहोई स्वरूप से है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार इस दिन से दीपावली का प्रारंभ भी माना जाता है।

इस तरह खोलते हैं व्रत
अहोई अष्टमी के उपवास के लिए माताएं प्रात:काल ही उठकर, एक कोरे करवे अर्थात मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर माता अहोई का ध्यान कर अपने बच्चों की सलामती के लिए पूजा करती हैं। इस दिन माताएं पूरा दिन अपनी संतान के लिए निर्जल उपवास भी करती हैं। जिसे सूर्यास्त के बाद संध्या के समय कुछ लोग तारों को अर्घ्य देकर व कुछ लोग चंद्रमा को अर्घ्य देकर खोलते हैं।

इसके लिए किया जाता है व्रत
ऐसे मुख्य रूप से अहोई अष्टमी का व्रत संतान सुख व संतान की कामना के लिए किया जाता है। इस दिन निःसंतान दंपत्ति भी संतान प्राप्ति की कामना के साथ पूरे विधि-विधान से अहोई अष्टमी के व्रत का पालन करते हैं। दरअसल इस दिन लोग देवी पार्वती के अहोई स्वरूप से अपनी संतान की सुरक्षा, लंबी आयु, उसके अच्छे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति की कामना के लिए पूरी निष्ठा और श्रद्धा से पूजा-पाठ करते हैं। इस दिन अधिकतर घरों में महिलाएं कच्चा खाना बनाती हैं।

यह है पूजा विधि
पुरानी मान्यताओं के अनुसार अहोई पूजन के लिए शाम के समय घर की उत्तर दिशा की दीवार पर गेरू या पीली मिट्टी से आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास सेह तथा उसके बच्चों की आकृतियां बनाई जाती हैं। ऐसे कई समृद्ध परिवार इस दिन चांदी की अहोई बनवाकर भी पूजन करते हैं। इसी के साथ कुछ जगह चांदी की अहोई में दो मोती डालकर विशेष पूजा करने का भी विधान है।

शुभ मुहूर्त
कार्तिक कृष्ण पक्ष में चन्द्रोदय व्यापिनी अष्टमी को मनायी जानी चाहिए, इसलिए 2018 में 31 अक्टूबर को अहोई अष्टमी मनायी जाएगी। शुभ मुहूर्त- शाम 5.45 से 7.00 बजे तक है।

यह है कथा
वहीं कुछ लोग एक धागे में अहोई व दोनों चांदी के दानें डालते हैं। फिर हर साल इसमें दाने जोड़े जाने की प्रथा प्रचलित है। इसके अलावा पूजन के लिए घर की उत्तर दिशा या ब्रह्म केंद्र में जमीन पर गोबर और चिकनी मिट्टी से लीपकर कलश स्थापना की जाती है। तत्पश्चात प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी की पूजा के बाद अहोई माता की पूजा और उन्हें दूध, शक्कर और चावल का भोग भी लगाते हैं। फिर एक लकड़ी के पाटे पर जल से भरा लोटा स्थापित करके अहोई की कथा सुनी-सुनाई जाती है। कथा इस तरह है कि एक साहूकार की बहुएं दीपावली की तैयारियां कर रही थीं। इसके लिए अपने घर को चमकाने के लिए पास के वन से मिट्टी ले गई। तभी मिट्टी काटते समय उनकी छोटी बहु के हाथों से कांटे वाले पशु साही के बच्चे की मृत्यु हो गई। साही की मां ने छोटी बहू को श्राप दिया कि जिस तरह उसके बच्चों की मृत्यु हो गई ठीक उसी तरह उसकी कोख भी सूनी हो जाएगी। श्राप मिलते ही उसके सारे बच्चों की मौत हो गई। फिर साहूकार की बहू ने साही और मां भगवती की पूजा-आराधना करना शुरू किया तो उसके सभी संतान फिर से जीवित हो गए।

इस तरह करें पूजन
महिलाएं तारों या फिर चंद्रमा के निकलने पर महादेवी का षोडशोपचार पूजन करें। गौघृत में हल्दी मिलाकर दीपक करें, चंदन की धूप करें। देवी पर रोली, हल्दी व केसर चढ़ाएं। चावल की खीर का भोग लगाएं। पूजन के बाद भोग किसी गरीब कन्या को दान देने से सुफल मिलता है। वहीं जीवन से विपदाएं दूर करने के लिए महादेवी पर पीले कनेर के फूल चढ़ाएं। इसके साथ कुछ लोग अपने संतान की तरक्की के लिए देवी अहोई पर हलवा-पूड़ी चढ़ाकर, गरीब बच्चों में भी दान करते हैं। जानकारों के अनुसार संतानविहीन कुष्मांड पेट से 5 बार वारकर मां पार्वती पर चढ़ाएं तो लाभ अवश्य होता है।

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