सरकारी खरीदी केंद्रों पर समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने से हुआ मोहभंग

भोपाल। इस समय मप्र सहित देशभर में गेहूं की समर्थन मूल्य पर खरीदी हो रही है। लेकिन एमएसपी पर गेहूं की सरकारी खरीदी के आंकड़े सरकार के लिए संतोषप्रद नहीं है।  इसकी वजह बताई जा रही है कि किसान सरकारी खरीदी केंद्रों पर चल रही भ्रष्टाचारी व्यवस्था से परेशान हो गए है। वहीं मंडियों में उनकी उपज हाथों हाथ बिक रही है और तत्काल भुगतान भी हो रहा है। इस कारण सरकारी खरीदी केंद्रों पर समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने से किसानों का मोहभंग हो गया है।
जानकारी के अनुसार मप्र की मंडियों में गेहूं के दाम मजबूत बने हुए हैं। इससे भी किसान मंडी में माल बेच रहे हैं। अच्छी क्वालिटी के गेहूं की मांग अच्छी है और दाम बढ़ाकर दिए जा रहे हैं। वहीं भुगतान भी जल्दी हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ समर्थन मूल्य पर गेहूं बेचने जाने पर किसानों से कई प्रकार की वसूली हो रही है। उस पर भी उनके बेचे हुए गेहूं का भुगतान भी समय पर नहीं हो पा रहा है। दरअसल, पिछले दिनों सरकारी एजेंसियों द्वारा अमानक मानकर रिजेक्ट कर दिया था और किसानों का लाखों रुपए का भुगतान भी फंस गया, क्योंकि मंडी ने यह गेहूं खरीद लिया था। उसके बाद भारतीय खाद्य निगम ने निरीक्षण के बाद इसे अयोग्य बता दिया। इस संबंध में सहकारिता विभाग ने कई सोसाटियों को नोटिस भी जारी किए और यह निर्देश दिए कि खराब गुणवत्ता वाला गेहूं न खरीदे। इसी बीच प्रदेश के कई हिस्सों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि भी हुई, जिसके चलते किसानों की फसलें खराब हुईं और मंडियों में इस तरह के गेहूं की खरीदी भी रोक ली गई। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने निर्देश जारी किए कि बारिश में भीगा और चमकविहीन गेहूं भी खरीदा जाएगा।
26 अप्रैल तक के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में गेहूं की कुल खरीदी 122.36 लाख टन हुई है, जबकि बीते वर्ष इसी अवधि तक खरीदी 169.23 लाख टन हो चुकी थी। हरियाणा से लेकर मप्र और पंजाब तक गेहूं खरीदी में पीछे हैं। मप्र में अब तक 33.71 लाख टन खरीदी हो चुकी है। बीते वर्ष 45.18 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। यानी मप्र में इस साल खरीदी कम है जबकि सरकार ने खरीदी जल्द शुरू की है और बीते दिनों से पैमाने में भी छूट दी है। अभी बेमौसम हुई बारिश और ओलावृष्टि के कारण फसलों को नुकसान हुआ। खासकर मंडियों में भेजा जाने वाला गेहूं भी भीगा और चमकविहीन हो गया, जिसकी खरीदी अधिकांश केन्द्रों पर नहीं हो रही थी। मगर अब मुख्यमंत्री ने इस तरह के गेहूं को भी समर्थन मूल्य पर खरीदने के निर्देश दिए हैं। दूसरी तरफ कल शासन ने यह भी निर्णय लिया कि गेहूं खरीदी का काम हफ्ते में 5 दिन की 2700 रुपए प्रति क्विंटल गेहूं का दाम कब मिलेगा
जीतू पटवारी ने प्रधानमंत्री से पूछा कि प्रदेश में रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं है, किसान कल्याण तथा कृषि संचालनालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2021-22 में एमपी में 9829 हजार हेक्टेयर रकबे पर गेहूं और 3441 हजार हेक्टेयर भूमि पर धान की फसल ली गई। लेकिन, इनसे किए वादों को पूरा क्यों नहीं गया? गेहूं का उत्पादन 35669 हजार मीट्रिक टन और धान का 12502 हजार मीट्रिक टन रहा। गेहूं धान के इस सीजन में किसानों ने अपना रकबा और बढ़ाया ही है। इस उम्मीद में कि उन्हें गेहूं के लिए 2700 और धान के लिए 3100 का भुगतान दिया जाएगा। किसानों के साथ हुई इस धोखाधड़ी की भरपाई कब की जाएगी?
इस वर्ष लगभग 100 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदी का लक्ष्य रखा गया है। सहकारी समितियों के जरिए किसानों से खरीदे गए 4.80 लाख क्विंटल गेहूं की क्वालिटी खराब बताकर वेयर हाउसिंग एवं लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन ने हजारों किसानों की कमाई पर पानी फेर दिया है। अमानक गेहूं के चक्कर में किसानों के 115 करोड़ रूपए फंस गए हैं। गौरतलब है कि गेहूं खरीदी के लिए नोडल विभाग खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम है जिसने प्रदेश में लगभग 3642 खरीदी केंद्र बनाए हैं। ज्ञातव्य है प्रदेश में बेमौसम बरसात तथा ओलावृष्टि के कारण कुछ क्षेत्रों में गेहूं फसल प्रभावित हुई है, दाना भी चमकविहीन हो गया है। सरकार के मौखिक निर्देश पर नागरिक आपूर्ति निगम (नान)ने किसानों से हर तरह के गेहूं को खरीदना शुरू कर दिया है। लेकिन नान के गेहूं को डब्ल्यूएलसी (वेयर हाउसिंग एवं लॉजिस्टिक कॉर्पोरेशन) ने फेल कर दिया है।
प्रदेश में सहकारी समितियों के जरिए किसानों से खरीदे गए 4.80 लाख क्विंटल गेहूं की क्वालिटी पर दो संस्थानों में फंसे पेच ने हजारों किसानों की मुसीबतें बढ़ा दी हैं। डब्ल्यूएलसी का दावा है कि उक्त गेहूं गुणवत्ता के निर्धारित मापदंड पर खरा नहीं है। यदि इसे लिया गया तो भविष्य में एफसीआई इसे फेल कर सकता है या फिर राशन की दुकानों से होते हुए गरीबों की थाली तक पहुंचा तो आफत आ सकती है। कहा जा रहा है कि किसानों ने खराब गेहूं नहीं बेचा है बल्कि समितियों में खराग हुए हैं। दरअसल समितियों के पास संसाधन कम थे। बारिश से गेहूं गीला हो गया। गीले गेहूं को सुखाने बड़े और कवर्ड मैदान की जरूरत थी। बार-बार मौसम खराब हो रहा था इसलिए समितियों ने पीछा छुड़ाते हुए परिवहन करा दिया।
वहीं किसान संगठनों ने गड़बड़ी के आरोप लगाए। उनका कहना है कि किसानों ने यदि खराब गेहूं दिया होता तो सहकारी समितियां उसे पहले ही लौटा देतीं। किसानों ने जो गेहूं बेचा है, उसे गोदामों में जमा नहीं किया जा रहा है। समर्थन मूल्य के हिसाब से इसकी कीमत 119 करोड़ 20 लाख रुपए करीब है। डब्ल्यूएलसी भोपाल से रिटायर्ड मैनेजर अनिल बाजपेयी के मुताबिक समितियां अब इसकी स्वयं के खर्च पर ग्रेडिंग कराते हुए उसे दोबारा भेजेंगी। यदि फिर भी वह एफएक्यू (फ़ेयर एवरेज क्वालिटी) मापदंड में उचित नहीं पाया जाता, किसानों को लौटाया जाएगा। इस तरह जब तक उक्त गेहूं का निराकरण नहीं हो जाता, किसानों को भुगतान भी नहीं होगा। प्रदेश में 20 मार्च से समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी शुरू हुई है। अब तक 2 लाख 85 हजार किसान 23 लाख मीट्रिक टन गेहूं बेच चुके हैं। केंद्रों में समितियों द्वारा गेहूं की गुणवत्ता जांच की जाती है। समितियों ने जिस गेहूं का अच्छा बताकर खरीदा उसे डब्ल्यूएलसी ने घटिया बताकर गोदामों में लेने से ही मना कर दिया। किसान नेता सुरेंद्र राजपूत का कहना है कि खरीदी केंद्रों में संसाधनों की कमी थी। विभागों की लापरवाही का खमियाजा किसान बिल्कुल नहीं भुगतेंगे। गेहूं लौटाया गया तो किसान आंदोलन होगा। आक्युत खाद्य नागरिक आपूर्ति रवींद्र सिंह का कहना है कि रिजेक्टेड गेहूं वापस किए जा रहे हैं। इसकी ग्रेडिंग समितियों से कराएंगे। किसानों का नुकसान न हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाएगा। जानकारी के अनुसार, उज्जैन में 5203 मीट्रिक टन, शाजापुर में 8572 मीट्रिक टन,  टन, देवास में 3150 मीट्रिक टन, इंदौर में 1923 मीट्रिक टन, विदिशा में 2587 मीट्रिक टन, भोपाल में 3440 मीट्रिक टन, सीहोर में 9002 मीट्रिक टन, रायसेन में 6480 मीट्रिक टन, राजगढ में 1153 मीट्रिक टन, नर्मदापुरम में 1462 मीट्रिक टन और सागर में 3260 मीट्रिक टन गेहूं रिजेक्ट किया गया है।

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