संकटमोचन हनुमान के ह्रदय में बसते है राम! 

भगवान राम के परमभक्त हनुमान को संकटमोचन कहा जाता है। हनुमान की पूजा करने से हर प्रकार के संकट और बाधाओं से मुक्त हो जाते हैं,ऐसी मान्यता है। अपने भक्तों को हनुमान हर भय, पीड़ा से मुक्त रखते हैं। हनुमान की स्तुति यूं तो हरदिन की जाती है,लेकिन हनुमान जयंती पर इसका विशेष महत्व है। इसी दिन हनुमान का जन्म हुआ था। इस दिन हनुमानजी के नाम का व्रत करके बूंदी, हलवा, लड्डू जैसी मीठी चीजों का भोग लगाने से हनुमान की कृपा हमेशा अपने भक्तों पर बनी रहती है।चैत्र पूर्णिमा के तिथि 23 अप्रैल 2024 को सुबह 3:25 बजे से हनुमान जयंती शुरू होगी, और 24 अप्रैल 2024 को सुबह 5:18 बजे पर समाप्त होगी। इस कारण से हनुमान जयंती 23 अप्रैल को मनाई जा रही है। सुबह 3:25 बजे से लेकर 5:18 बजे के बीच हनुमान जी की पूजा कर सकते हैं। इस दिन चित्रा नक्षत्र भी पड़ रहा है, चित्रा नक्षत्र के स्वामी मंगल है। मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित होता है। हनुमान जयंती पर एक और संयोग बन रहा है कि इस दिन मंगल मीन राशि में गोचर कर रहे हैं। पौराणिक कहानियों के अनुसार हनुमान जी को अमरत्व का वरदान प्राप्त है। हनुमान बाबा पर आस्था और श्रद्धा रखने वाले भक्त मानते हैं कि हनुमान जी कलियुग में भी जीवित हैं और अपने भक्तों के सभी संकटों और कष्टों को दूर कर रहे हैं। जो लोग आकस्मिक संकट, रोग पीड़ा, मृत्यु भय जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, उन्हें हनुमान जी की पूजा जरूर करनी चाहिए। भगवान राम के भक्त हनुमान जी की रामभक्ति अनुकरणीय रही है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के दशवे अध्याय में कहा है कि रूद्रो में शंकर मैं ही हूं। अर्थात मैं ही हनुमान भी हूं जो सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते है।
कहते है, हनुमान ने सुरसा की बात मान ली थी और उसका भोजन बनना स्वीकार कर लिया था, सुरसा ने ज्यों ही मुंह खोला, पवन पुत्र ने अपना आकार विशाल कर लिया। यह देख सुरसा ने भी अपना आकार बड़ा कर लिया। जब हनुमान ने देखा कि सुरसा ने अपनी सीमा लांघ कर मुंह का आकार और भी बड़ा कर लिया तो वे तत्काल अपने विशाल रूप को समेटते हुये उसके मुंह के अंदर गये और बाहर वापस आ गये। हनुमान के बुद्वि कौशल से प्रसन्न होकर सुरसा ने उन्हें आर्शीर्वाद देते हुये कहा पुत्र, तुम अपने कार्य में सफल हो। हनुमान ने अपने शरीर को पहले विशालकाय और फिर एक छोटे रूप से महिमा तथा लधिमा सिद्वि के बल पर किया था। हनुमान रूद्र के ग्यारहवें अवतार माने जाते है। संकटमोचक हनुमान अष्ट सिद्वि और नव निधि के दाता भी है। हनुमान अणिमा, लधिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, महिमा, इशित्व और वशित्व इन सभी आठ प्रकार की सिद्वियों के स्वामी है।आध्यात्मिक चिंतक डॉ मुरलीधर की माने तो, राम जब लक्ष्मण के साथ सीता जी को वन-वन खोज रहे थे तब वहां ब्राह्मण वेश में हनुमानजी अपनी सरलता, वाणी और ज्ञान से रामजी को प्रभावित कर लेते है। वह वंशीकरण वशित्व सिद्वि है। माता सीता को खोजने के क्रम में जब पवन पुत्र सागर को पार करने के लिए विराट रूप धारण करते है तो उनका यह कार्य महिमा सिद्वि का रूप धारण कर लेता है। इसी प्रकार जब हनुमान सागर पार कर लंका में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़े तो अति सूक्ष्म रूप धर कर अणिमा सिद्वि को साकार किया। माता सीता को खोजते खोजते जब बजरंग बली अशोक वाटिका में पहुंचे तो उनके लघु रूप बनने में लधिमा सिद्वि काम आयी। इसी प्रकार पवन सुत की गरिमा सिद्वि के दर्शन करने के लिए महाभारत काल में जाना होगा, जब हनुमान महाबली भीम के बल के अंधकार को तोड़ने के लिए बूढ़े बानर का रूप धारण उनके मार्ग में लेट गये थे और भीम उनकी पूंछ को हिला भी नही पायें। इसी प्रकार बाल हनुमान के मन में उगते हुये सूर्य को पाने की अभिलाषा जागी तो उन्होंने उसे पकड़ कर मुंह में रख लिया तो अभिलाषा सिद्वि के दर्शन हुये। प्राकाम्य सिद्वि को समझने के लिए पवन पुत्र की राम के प्रति भक्ति को समझना होगा। रामभक्त हनुमान ने राम की भक्ति के अलावा और कुछ नही चाहा और वह उन्हें मिल गयी। इसलिए कहा जाता है कि हनुमान की कृपा पाए बिना राम की कृपा नही मिलती। पवन पुत्र की राम के प्रति अनन्य भक्ति का ही परिणाम था कि उन्हें प्रभुत्व और अधिकार की प्राप्ति स्वतः ही हो गयी इसे ही इंशित्व सिद्वि कहते है। इसी प्रकार नव रत्नों को ही नौ निधि कहा जाता है। ये है-पद्य महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्ब। सांसारिक जगत के लिए ये निधियां भले ही बहुत महत्व रखती हों, लेकिन भक्त हनुमान के लिए तो केवल राम नाम की मणि ही सबसे ज्यादा मूल्यवान है। रावध वध के पश्चात एक दिन श्रीराम सीताजी के साथ दरबार में बैठे थे। उन्होंने सभी को कुछ न कुछ उपहार दिय। श्रीराम ने हनुमान को भी उपहारस्वरूप मूल्यवान मोतियों की माला भेंट की। पवन पुत्र उस माला से मोती निकाल निकालकर दांतों से तोड़ तोड़कर देखने लगे। हनुमान के इस कार्य को देखकर भगवान राम ने हनुमान से पूछा, हे पवन पुत्र आप इन मोतियों में क्या ढूंढ रहे हो? पवन पुत्र ने कहा, प्रभु में आपको और माता को इन मोतियों में ढूंढ रहा हूं। लेकिन इसमें आप कही नही दिखाई दे रहे है और जिस वस्तु में आप नही, वह मेरे लिए व्यर्थ है। यह देख एक दरबारी ने उसने कहा पवन पुत्र क्या आपको लगता है कि आपके शरीर में भी भगवान है? अगर ऐसा है तो हमें दिखाइए। नही तो आपका यह शरीर भी व्यर्थ है। यह सुनकर हनुमान ने भरी सभा में अपना सीना चीरकर दिखा दिया। पूरी सभा यह देखकर हैरान थी कि भगवान राम माता जानकी के साथ हनुमान के हृदय में विराजमान है।तभी तो हनुमानजी को राम का परमभक्त होने का सम्मान मिला और वे चिरंजीवी कहलाये।

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