रांची सिविल कोर्ट के एडीजे सात विशाल श्रीवास्तव की अदालत ने गवाही बंद कर दी है

रांची। हाईकोर्ट और सरकार द्वारा बार-बार एमपी/एमएलए से जुड़े मुकदमों से संबंधित सरकारी/निजी गवाहों को कोर्ट में पेश कर ट्रायल पूरा करने पर जोर दिया जाता है। वहीं, कुछ मामलों में शिथिलता भी बरती जाती है।

मामले में ये बनाए गए थे नामजद अभियुक्‍त

हजारीबाग जिले के बड़कागांव के ढेंगा में 14 अगस्त, 2015 को हुए चर्चित गोलीकांड के मामले में रांची सिविल कोर्ट के एडीजे सात विशाल श्रीवास्तव की अदालत ने गवाही बंद कर दी है। मामले को लेकर बड़कागांव थाना कांड संख्या 167/15 दर्ज किया गया था, जिसमें पूर्व विधायक योगेंद्र साव, उनकी पत्नी निर्मला देवी सहित दर्जनों लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया था।

इस वजह से कोर्ट ने बंद की गवाही

सरकार की तरफ से केस के सूचक तत्कालीन एसडीओ अनुज प्रसाद, अनुसंधानकर्ता इंस्पेक्टर अवधेश सिंह और चिकित्सक के साथ तत्कालीन थाना प्रभारी रामदयाल मुंडा की गवाही नहीं कराई जा सकी। कोर्ट द्वारा बार-बार गवाहों को बुलाने के बावजूद सरकार द्वारा गवाह नहीं पेश किए जाने पर कोर्ट ने गवाही बंद कर आगे की कार्यवाही करते हुए आरोपियों के बयान दर्ज कराने का आदेश दे दिया है।

किसान अधिकार महारैली में हुई थी झड़प

कांड के सूचक अनुज प्रसाद, रामदयाल मुंडा अभी नौकरी में हैं, वहीं कांड के अनुसंधानकर्ता अवधेश सिंह सेवानिवृत्त होकर हजारीबाग जिले के केरेडारी में एक कंपनी में सुरक्षा सलाहकार की नौकरी कर रहे हैं। बता दें कि किसान अधिकार महारैली के दौरान पुलिस-पब्लिक के बीच हुई झड़प में छह लोग घायल हो गए थे। जबकि, पुलिस की चार्जशीट में किसी के घायल होने का जिक्र नही किया गया था, जिसे लेकर हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिट दायर किया गया था। हाईकोर्ट में सरकार की तरफ से शपथ दायर कर बड़कागांव थाना कांड संख्या 167/2015 की घटना में लोगों के घायल होने की बात स्वीकार करते हुए सीआइडी से जांच कराने की बात कही गई थी।

वहीं, ट्रायल कोर्ट ने जब सरकार द्वारा सीआइडी जांच के आदेश और हाईकोर्ट के आदेश पर सहायक लोक अभियोजक से जवाब मांगा तो चार महीने बाद कोर्ट में यह जवाब दिया गया कि हाईकोर्ट ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है।

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