ठुमरी गायिका गिरिजा देवी नहीं रहीं: गायकी का जुनून ऐसा कि उंगलियां जला बैठती थीं

काेलकाता.पद्म विभूषण और पद्मश्री से सम्मानित ठुमरी गायिका गिरिजा देवी का मंगलवार को कोलकाता में निधन हो गया। वे 88 साल की थीं। गिरिजा ने बिरला हॉस्पिटल में मंगलवार रात करीब साढ़े नौ बजे आखिरी सांस ली।

– उन्हें सुबह तबीयत खराब होने के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हालांकि, देर शाम उनकी सेहत में सुधार हुआ था, लेकिन रात करीब 8 बजे हालत बिगड़ गई थी। कोलकाता के बीएम बिरला नर्सिंग होम के डॉक्टर्स के मुताबिक, उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।

'ठुमरी क्वीन' के नाम से थी मशहूर

– 8 मई 1929 को गिरिजा देवी का जन्म बनारस में जमींदार परिवार में हुआ था। महज 5 साल की उम्र में उनके पिता रामदेव राय ने उन्हें म्यूजिक सिखाना शुरू कर दिया था। उनके पहले गुरु पंडित सरजू महाराज थे।

– नौ साल की उम्र में पंडित श्रीचन्द्र मिश्र से उन्होंने संगीत सीखा। इसी दौरान उन्होंने फिल्म ‘याद रहे’ में भी बतौर एक्ट्रेस काम किया।

– 1946 में एक कारोबारी परिवार में उनकी शादी हो गई। उन्होंने 1949 में ऑल इंडिया रेडियो से गायन की शुरुआत की, लेकिन उन्हें मां और बड़ी बहन का विरोध झेलना पड़ा। उनकी कजरी ‘बरसन लागी’ काफी मशहूर हुई थी। उन्हें 'ठुमरी क्वीन' कहा जाता था।

– उन्होंने आईटीसी संगीत रिसर्च एकेडमी (कोलकाता) और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के म्यूजिक डिपार्टमेंट में भी अपनी सेवाएं। वे आखिर तक गायन से जुड़ी रहींं।

गिरिजा खाना बनाते वक्त संगीत की कॉपी साथ रखती थीं, इस जुनून में कई बार उंगलियां जला बैठीं

– चाहे विलंबित लय की ठुमरी हो, मध्य लय की ठुमरी हो, गत भाव ठुमरी हो, भाव नृत्य ठुमरी हो, बोल बनाव हो या बोल बांट ठुमरी हो, सबकी मुर्की, किटगिरी और पुकार में एक जैसा रस होता था। उनकी आवाज में भीतर से एक खनक थी। इस वजह से उनकी आवाज और सुरीली हो जाती है।

– इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- "मैं खाना बनाते हुए रसोई में अपनी संगीत की कॉपी साथ रखती थी और तानें याद करती थी। अक्सर रोटी सेंकते वक्त मेरा हाथ जल जाता था, क्योंकि तवे पर रोटी होती ही नहीं थी। मैंने संगीत के जुनून में बहुत बार उंगलियां जलाई हैं।"

ठुमरी 6 तरह होती हैं, सभी पर समान पकड़ थी

– गिरिजा देवी जहां गातीं, एक ठुमरी की फरमाइश जरूर होती… रस से भरे तोरे नैन… लेकिन उनकी आवाज में जो रसीलापन था, आज इस ठुमरी के बोल में नैन की जगह बैन किया जाना बड़ा अपना सा लग रहा है। बनारस घराने या पूरब अंग बनारस की पहचान रहीं गिरिजा देवी को ठुमरी साम्राज्ञी कहा जाता था, लेकिन चैता, चैती, घाटो, कजरी और झूला पर भी उनकी समान पकड़ थी।

– गिरिजा कहतीं थीं, आखिर ठुमरी है क्या? जिसमें ठुमक कर शब्द आएं, वही ठुमरी। ठुमरी 6 तरह की होती हैं। उन्हें सभी पर महारत हासिल थी। न किसी में उन्नीसा, न बीसा। सब में समान।

ये थे अचीवमेंट्स

– पद्मश्री- 1972

– पद्मभूषण- 1989

– पद्मविभूषण- 2016

– संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड- 1977

– महासंगीत सम्मान- 2012

– संगीत सम्मान अवार्ड- 

– गीमा अवार्ड- 2012 (लाइफ टाइम अचीवमेंट)

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