दहेज विरोधी कानून: तुरंत गिरफ्तारी से राहत नहीं, अपने ही फैसले से SC सहमत नहीं

नई दिल्ली
दहेज विरोधी कानून की सख्ती कम करने के अपने ही फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने असहमति जताई है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नेतृत्व में तीन सदस्यीय बेंच ने इस संबंध में 27 जुलाई के दो सदस्यीय बेंच के उस फैसले से असहमति जताई, जिसमें पति और ससुरालवालों को तुरंत गिरफ्तारी से राहत दी गई थी।

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की दो सदस्यीय बेंच ने 27 जुलाई को सेक्शन 498ए के तहत आरोपों के सत्यापन के बिना तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी। दो सदस्यी बेंच ने एनसीआरबी के रिकॉर्ड्स का हवाला दिया था जिसमें महिलाओं द्वारा दहेज विरोधी कानून के दुरुपयोग के संकेत मिले थे। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने इससे असहमति जताते हुए कहा कि इससे उत्पीड़न की शिकार महिलाओं का अधिकार वास्तव में कमजोर होता है।

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि फैसले में आईपीसी की धारा 498ए के तहत गिरफ्तारी के लिए कुछ दिशानिर्देश तय किये गये थे जो विधायिका के अधिकार क्षेत्र की एक कवायद लगती है। हम इस विचार से सहमत नहीं हैं।

बेंच ने कहा कि हमारा मानना है कि यह वास्तव में उन महिलाओं अधिकारों को कमतर करता है, जिनका आईपीसी की धारा 498ए (विवाहित महिला के साथ क्रूरता से संबंधित) के तहत उत्पीड़न होता है। सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय, महिला और बाल विकास मंत्रालय व राष्ट्रीय महिला आयोग को नोटिस जारी किया है और 29 अक्टूबर तक केंद्र से जवाब मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा और वी शेखर को मामले में सहयोग करने के लिए अदालत मित्र के रूप में नियुक्त किया है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच एनजीओ न्यायाधार की एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले की कुछ महिला अधिवक्ताओं ने यह संगठन बनाया था। इस याचिका में धारा 498 ए को और धारदार बनाने की मांग की गई थी। याचिका में दावा किया गया था कि ऐसा नहीं होने पर पीड़ित महिलाओं का यह सहायक औजार कुंद हो गया है।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने राजेश शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में फैसला सुनाते हुए गाइडलाइंस जारी किए थे। बेंच ने कहा था कि दहेज प्रताड़ना मामले को देखने के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए और समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही गिरफ्तारी होनी चाहिए उससे पहले नहीं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि अगर महिला जख्मी हो या फिर उसकी प्रताड़ना की वजह से मौत हो जाए तो मामला अलग होगा और फिर वह इस दायरे में कवर नहीं होगा। ऐसे मामले में गिरफ्तारी पर रोक नहीं होगी।

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