पंजाब कांग्रेस को बैक फायर का डर, नवजोत सिद्धू पर टिकीं सभी की निगाहें, क्या बढ़ेंगी मुश्किलें

पंजाब की 15वीं विधानसभा का आठवां सत्र 2 अगस्त से शुरु होने वाला है। विपक्ष की ओर से सरकार को सदन में घेरने के लिए कानून-व्यवस्था, बिजली दरें, किसानी जैसे मुद्दे तैयार किए हुए हैं। लेकिन सत्ताधारी कांग्रेस इस बार विपक्ष की बजाए अपने विधायक नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर चिंतित है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से नाराजगी के चलते कैबिनेट मंत्री की कुर्सी छोड़ चुके नवजोत सिद्धू सदन में बैक फायर न शुरु कर दें। नवजोत सिद्धू ने बीते 6 जून को मुख्यमंत्री द्वारा उनका विभाग बदले जाने के बाद करीब सवा महीने तक चुप्पी साधे रखी थी और इस दौरान पार्टी आलाकमान के जरिए वह मुख्यमंत्री पर दबाव बनाने की चुपचाप कोशिश भी करते रहे। लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली और उन्होंने कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 

इस्तीफा प्रकरण के दौरान उन्होंने मुख्यमंत्री या पार्टी की शान में कोई गुस्ताखी करने से परहेज किया। इस्तीफा मंजूर होने के बाद भी वे चुपचाप सरकारी बंगला छोड़कर अपने निजी आवास में चले गए। लेकिन सिद्धू से यह खामोशी ही प्रदेश कांग्रेस और राज्य सरकार की चिंता बढ़ा रही है।

 2 से 6 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र के दौरान सदस्यों को तीन सीटिंग में ही अपनी बात रखने का मौका मिलेगा लेकिन माना जा रहा है कि इस दौरान विपक्ष की नजर भी नवजोत सिद्धू पर रहेगी, कि वे सदन में उठाए जाने वाले जनता से जुड़े मुद्दों पर सरकार का पक्ष लेंगे या खामोशी साधे रखेंगे। 

 

दरअसल, कांग्रेस की चिंता का एक बड़ा कारण यह भी है कि गत 25 जुलाई को स्थानीय निकाय मंत्री ब्रह्म मोहिंदरा ने अमृतसर के विधायकों के साथ बैठक बुलाई थी, जिसमें नवजोत सिंह सिद्धू हिस्सा लेने नहीं पहुंचे। दूसरी ओर, सिद्धू ने कैबिनेट मंत्री का पद छोड़ने के बाद अमृतसर के अपने हलके में सक्रियता भी बढ़ा दी है, जिसके तहत वह अपने समर्थकों के साथ लगातार बैठकें कर रहे हैं। 

माना जा रहा है कि सिद्धू अपने हलके के विकास और समस्याओं को लेकर अपनी ही सरकार को सदन में घेर सकते हैं। राज्य सरकार की बड़ी चिंता यही है कि अगर सिद्धू ने सदन में अपनी सरकार की योजनाओं पर सवाल उठा दिए तो विपक्ष को सरकार पर हमले का बड़ा मौका मिल जाएगा और सरकार दो तरफा बचाव की हालत में आ जाएगी। 

सिद्धू के इस्तीफे को लेकर पार्टी में एक विशेष बात यह भी देखी गई थी कि मुख्यमंत्री के इस्तीफा स्वीकारने संबंधी फैसले का किसी मंत्री या कांग्रेस विधायक ने स्वागत नहीं किया था बल्कि इस पूरे मामले को लेकर कांग्रेस विधायकों में खामोशी छाई हुई है। इसी आशंका के मद्देनजर, पता चला है कि कांग्रेस ने सत्र शुरु होने से पहले अपने विधायकों को साधने की कोशिशें तेज कर दी हैं। 

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