बुद्ध पूर्णिमा: जब राजकुमार सिद्धार्थ बन गए ‘बुद्ध’

बुद्ध पूर्णिमा दिवस भगवान बुद्ध की बुद्धत्व की प्राप्ति हेतु मनाया जाता है. इस दिन को बौद्ध धर्म के लोग ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म के लोग भी धूमधाम से मनाते हैं. दरअसल, हिंदू धर्म के अनुसार बुद्ध भगवान, भगवान विष्णु के 9वें अवतार हैं, इसलिए यह पर्व हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए भी खास होता है.


क्यों मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा?


भगवान बुद्ध ने जब अपने जीवन में हिंसा, पाप और मृत्यु को जाना तब उन्होंने मोह माया त्याग कर अपने गृहस्थ जीवन से मुक्ति ले ली और जीवन के सत्य की खोज में निकल पड़े. कई सालों तक बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे तपस्या कर जब उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई तो यह दिन पूरी सृष्टि के लिए खास दिन बन गया जिसे वैशाख पूर्णिमा या बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है.


बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर जानते हैं महात्मा बुद्ध के जीवन की खास बातें-


(1) गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे. बुद्ध को एशिया का ज्योति पुंज कहा जाता है.


(2) गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुंबिनी, नेपाल में हुआ था.


(3) इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे.


(4) सिद्धार्थ के जन्म के सात दिन बाद ही उनकी मां मायादेवी का देहांत हो गया था.


(5) सिद्धार्थ की सौतेली मां प्रजापति गौतमी ने उनको पाला.


(6) इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था.


(7) सिद्धार्थ का 16 साल की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ.


(8) इनके पुत्र का नाम राहुल था.


(9) सिद्धार्थ जब कपिलवस्तु की सैर के लिए निकले तो उन्होंने चार दृश्यों को देखा:


(i) बूढ़ा व्यक्ति


(ii) एक बीमार व्यक्ति


(iii) शव


(iv) एक संन्यासी


(10) सांसारिक समस्याओं से दुखी होकर सिद्धार्थ ने 29 साल की आयु में घर छोड़ दिया. जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है.


(11) गृह त्याग के बाद बुद्ध ने वैशाली के आलारकलाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की.


(12) आलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरू थे.


 (13) आलारकलाम के बाद सिद्धार्थ ने राजगीर के रूद्रकरामपुत्त से शिक्षा ग्रहण की.


(14) उरूवेला में सिद्धार्थ को कौण्डिन्य, वप्पा, भादिया, महानामा और अस्सागी नाम के 5 साधक मिले.


(15) बिना अन्न जल ग्रहण किए 6 साल की कठिन तपस्या के बाद 35 साल की आयु में वैशाख की पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के किनारे, पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ.


(16) ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से जाने जाने लगे. जिस जगह उन्‍हें ज्ञान प्राप्‍त हुआ, उसे बोधगया के नाम से जाना जाता है.


(17) बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है.


(18) बुद्ध ने अपने उपदेश कौशल, कौशांबी और वैशाली राज्य में पालि भाषा में दिए.


(19) बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए.


(20) इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे:


(i) बिंबसार


(ii) प्रसेनजित


(iii) उदयन


(21) बुद्ध की मृत्यु 80 साल की उम्र में कुशीनारा में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गई. जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है.


Leave a Reply