भगवा, भाजपा और भोपाल: साध्वी प्रज्ञा और उमा भारती में ये हैं समानताएं

बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से उम्मीदवार बनाया है. वह कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ मैदान में उतरी हैं जिन्होंने मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी का नाम आने के बाद इसे भगवा आतंकवाद का नाम दिया था. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह आरएसएस और बीजेपी पर तीखे हमले करने के लिए जाने जाते रहे हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा भी है जो हिंदू आतंकवाद शब्द के जन्मदाता हैं हमने उन्हीं के खिलाफ साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतारा है.

कयास यह भी लगाए जा रहे हैं कि जिस तरह उमा भारती ने दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका था क्या उसी तरह साध्वी प्रज्ञा दिग्विजय की राजनीतिक आकांक्षा पर विराम लगा देंगी. क्योंकि साध्वी प्रज्ञा और उमा भारती में कई समानताएं है. दोनों का विवादों से नाता रहा है. दोनों का पहनावा भी एक ही तरह का है. उमा भारती 1999 में उसी भोपाल से सांसद चुनी गई थीं जहां से साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाया गया है.   

साध्वी प्रज्ञा की भोपाल से उम्मीदवारी घोषित होने के बाद दिग्विजय ने जिन सधे शब्दों में उनका स्वागत किया उससे ऐसा लग रहा है कि वह कोई ऐसी बात नहीं करना चाहते जिससे साध्वी को फायदा मिले. ऐसा माना जा रहा है कि उमा भारती के बाद मध्य प्रदेश में बीजेपी को दूसरा फायरब्रांड नेता मिल गया है.   

दिग्विजय सिंह की कभी कांग्रेस में तूती बोलती थी वह 1993 से लेकर 2003 तक लगातार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. उससे पहले बीजेपी के सुंदरलाल पटवा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए पूरे प्रदेश की पदयात्रा की थी और बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रहे थे.

इसी तरह उमा भारती ने भी कांग्रेस के खिलाफ अभियान चलाया था और पूरे प्रदेश का दौरा किया था. 10 साल सीएम रहने के बाद एक साध्वी से दिग्विजय सिंह हार गए थे. भोपाल से साध्वी प्रज्ञा के उतरने के बाद यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या एक बार फिर साध्वी के हाथों ही दिग्विजय की हार होगी या इस बार वह अपना वजूद बचाने में कामयाब होंगे?

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भी उसी तरह की फायर ब्रांड नेता मानी जाती हैं जैसी उमा भारती मानी जाती रही हैं. उमा भारती भी भगवा वस्त्र धारण करती हैं और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का पहनावा भी ठीक वैसा ही है. कटे हुए बाल और, भगवा वस्त्र और गले में रूद्राक्ष की माला उनकी पहचान है. उमा भारती ने घोषणा कर दी है कि वह इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगी ऐसे में 48 साल की साध्वी प्रज्ञा ठाकुर राजनीति में भारती की उत्तराधिकारी भी साबित हो सकती हैं.

उमा भारती को बीजेपी की कद्दावर नेता विजयाराजे सिंधिया ने संरक्षण दिया था और उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाया था. उमा भारती भी बचपन से ही संघ से प्रभावित रहीं और बाद में बीजेपी से सांसद, विधायक चुनी गईं, उसी तरह साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का भी संघ से पुराना नाता है. उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में भी काम किया है. प्रज्ञा विश्व हिंदू परिषद की महिला शाखा दुर्गा वाहिनी से भी जुड़ी रही हैं. उमा भारती की शिक्षा कक्षा छठवीं तक ही हुई है लेकिन साध्वी प्रज्ञा ने एम ए तक पढाई की है.

उमा भारती 1999 में इसी भोपाल से सांसद चुनी गई थीं जहां से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को मैदान में उतारा गया है. भोपाल से सांसद चुने जाने के बाद ही पार्टी ने तय किया था कि उनमें ही दिग्विजय की सत्ता को उखाड़ फेंकने की क्षमता है. इसके बाद बीजेपी ने उन्हें मध्य प्रदेश की जिम्मेदारी सौंप दी थी. 2003 में मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को दो तिहाई बहुमत मिला था और उमा भारती को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था. उन्होंने दिग्विजय सिंह को अपदस्थ कर दिया था.

उमा भारती का विवादों से नाता रहा है वह अपनी बेलाग टिप्पणी के लिए जानी जाती हैं. आडवाणी का विरोध करने की वजह से उमा भारती को पार्टी तक से निकाल दिया गया था. उमा भारती को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद बड़ी पहचान मिली थी. इसी तरह साध्वी प्रज्ञा को भी प्रखर वक्ता माना जाता है. मालेगांव ब्लास्ट में नाम आने के बाद साध्वी प्रज्ञा को पूरे देश में पहचान मिली. आज भी स्पेशल एनआईए की स्पेशल कोर्ट में ट्रायल चल रहा है. उमा भारती पर भी बाबरी विध्वंस मामले में आरोपी हैं.

हालात बदले हुए हैं. दिग्विजय सिंह अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने जब सांसद का चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की थी तो एमपी के सीएम कमलनाथ ने कहा था कि अगर दिग्विजय सिंह चुनाव लड़ना चाहते हैं तो उन्हें कोई कठिन सीट चुननी चाहिए. भोपाल और इंदौर को कांग्रेस के लिए सबसे कठिन सीट माना जाता है. भोपाल में आखिरी बार 1984 में कांग्रेस का सांसद चुना गया था. 1989 से लेकर 2014 तक लगातार यहां से बीजेपी बाजी मारती रही. ऐसे में दिग्विजय ने भोपाल की चुनौती स्वीकार की.  

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर दिग्विजय सिंह यह लड़ाई जीत जाते हैं तो उन्हें मुख्यधारा में लाना पार्टी की मजबूरी होगी. लेकिन अगर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर से हार जाते हैं तो फिर उन्हें अपनी जमीन हासिल करने के लिए और कठिन मेहनत करनी होगी. दिग्विजय 72 साल के हो चुके हैं. ऐसे में उनके लिए यह चुनाव और महत्वपूर्ण हो जाता है.  

यह तय है कि साध्वी प्रज्ञा दिग्विजय को हिंदुत्व के मुद्दे पर घेरेंगी. भोपाल से टिकट पक्का होने के बाद उन्होंने यह कहा भी कि भारतीय संस्कृति पर दाग लगाने वालों के खिलाफ वह पूरे दम से लड़ेंगी. हालांकि दिग्विजय सिंह उन पर कड़ी टिप्पणी करने से बचते दिेखे.

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