राष्ट्रपति-पीएम बनने की चाह में क्या-क्या न किया

 चुनाव लड़ना अासान नहीं पर कई जुनूनी एेसे भी हुए हैं जिन्हाेंने एक-दाे बार नहीं, 40 बार चुनाव लड़ा। 1989 में जब आतंकवाद चरम पर था तब भी पीछे नहीं हटे। जीत एक बार भी नसीब नहीं हुई पर चुनावी मैदान में मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक काे ललकारा। ये थे जिला बरनाला के गांव सहिजड़ा के रहने वाले मित्त सिंह सहिजड़ा। 15 एकड़ जमीन के मालिक मित्त सहिजड़ा ने विधानसभा, राज्यसभा, लाेकसभा के कुल 40 चुनाव लड़े। बेशक वह साल 2014 में 16 फरवरी को दुनिया से अलविदा हो गए थे, लेकिन उनका दिलचस्प सियासी-रिकॉर्ड आज भी वजूद में है। 1992 में उन्होंने बसपा के टिकट पर बरनाला से चुनाव लड़ा, लेकिन महज 687 वोट से हार गए थे। 40 में से सिर्फ इसी चुनाव में वह जमानत बचा पाए थे। मित्त सहिजड़ा के परिवार में पत्नी और बेटा है। बेटा शमशेर सिंह बाजवा कनाडा में सेटल है। 

इंदिरा, राजीव, सोनिया और राहुल गांधी काे भी दी थी चुनाैती 

  • 70 के दशक में दो विधायकों के समर्थन से जीवन का पहला राज्यसभा के लिए चुनाव लड़ा था। उसके बाद उन्होंने शायद ही कभी कोई चुनाव हुआ जिसमें वह खड़े न हुए हों। उनकी हसरत प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने की थी। 
  • 1977, 1982, 1987, 1992, 1997 और 2002 में राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति बनने के लिए नामांकन दाखिल भी किए, लेकिन उनके नामांकन पत्र हर बार किसी वजह से कैंसिल कर दिए गए। 
  • 1978 में भूतपूर्व पीएम इंदिरा गांधी के खिलाफ चिकमंगलूर से लोकसभा चुनाव लड़ा था। क्योंकि उन्हें चुनाव में अपने प्रचार का बहुत शौक था। 
  • 1982 में भूतपूर्व पीएम राजीव गांधी के सामने अमेठी और 1990 में मडगांव में भी चुनाव लड़ा। 
  • 2006 में रायबरेली से यूपीए चेयरपरसन सोनिया गांधी के विरुद्ध चुनाव मैदान में उतरे। 
  • 2009 में अमेठी से कांग्रेस के मौजूद अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ भी चुनाव लड़ने पहुंचे थे।

आयोग ने एक बार नोटिस दिया, फिर कभी नहीं दिया : चिकमंगलूर चुनाव के 3 महीने बाद मित्त सिंह को चुनाव खर्च का ब्याेरा जमा नहीं करवाने का नोटिस मिला। इसके बाद 2-3 नोटिस मिले। इस पर वह सीधे चुनाव आयोग के दिल्ली स्थित अाॅफिस पहुंच गए। वहां जाकर कहा कि चुनाव बिना पैसा खर्च किए लड़ा है। खाना भी लाेगाें ने ही खिलाया। इसके बाद चुनाव अायाेग से कोई नोटिस नहीं मिला। 

7 सीटों पर एक साथ कर दिए नामांकन : 1989 में जब आतंकवाद चरम पर था, सहिजड़ा ने 7 सीटों पर नामांकन भरा था। उन्हें 80 सुरक्षाकर्मी और 12 गाड़ियों का काफिला मिला था। प्रचार दौरान सहिजड़ा अचानक लापता हो गए। अन्य उम्मीदवारों को चुनाव रद्द होने का डर सताने लगा। तीसरे दिन सहिजड़ा खुद ही प्रकट हो गए। 

चुनावी जानकारी से करते थे हैरान : अफसरों ने डांटा तो बोले- चुनाव जीत गया तो डिक्टेटर ही बनूंगा… सहिजड़ा कभी स्कूल नहीं गए थे पर सियासत की समझ में किसी से कम नहीं थे। सहिजड़ा बताते थे कि एक बार चुनावी खर्चों का हिसाब न देने पर उनको कई नोटिस मिले तो वह दिल्ली चुनाव आयोग के मुख्य दफ्तर गए। 

अफसर डांटने लगे तो उन्होंने पलटकर कहा कि मैं डिक्टेटर बनने वाला हूं। अफसरों ने कहा कि यहां डेमोक्रेसी में कोई डिक्टेटर नहीं बन सकता। इस पर सहिजड़ा ने जवाब दिया कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है कि लोकसभा की सभी सीटों से चुनाव लड़ने के लिए कागजात दाखिल करने की इजाजत दी जाए। इजाजत मिल गई और सब जगह से जीत गए तो डिक्टेटर बन जाएंगे। सहिजड़ा का दावा था कि उनकी पटीशन के चलते ही संसद में संविधान संशोधन बिल पेश कर लोकसभा चुनाव लड़ने की सीटें सीमित की गई थीं

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