1967 में भारत से मिले सबक को भूला नहीं चीन, ‘अटल जी’ ने छोड़ा था भेड़ों का झुंड

नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच सिक्किम क्षेत्र में बढ़ती तनातनी कम नहीं हुई है, वैसे चीन और भारत के बीच कभी रिश्ते सहज नहीं हुए हैं। हाल ही में सिक्किम इलाके में जिस तरह से भारतीय जवानों ने घुसपैठ करने वाले चीनी सैनिकों को जवाब दिया उसके बाद चीन में बौखलाहट है। चीन का चिढ़चिढ़ाहट इस बात से साफ झलक रही है जब उसने एक लेख में भारत को १९६२ की जंग से सबक लेने को कहा। हालांकि चीन खुद यह भूल गया कि उस एक हार का बदला भारत ने एक नहीं बल्कि दो बार लिया और चीनी सैनिकों को बुरी तरह से परास्त किया।

क्या हुआ था १९६७ में
१९६२ की घटना को भारत-चीन रणनीतिक एवं राजनयिक रिश्ते में एक बड़े प्रस्थान बिंदु के तौर पर देखा जाता है, पर वर्ष १९६७ को ऐसे साल के तौर पर याद किया जाता रहेगा जब हमारे सैनिकों ने चीनी दुस्साहस का मुंहतोड़ जवाब देते हुए सैकड़ों चीनी सैनिकों को न सिर्फ मार गिराया था, बल्कि उनके कई बंकरों को ध्वस्त कर दिया था। रणनीतिक स्थिति वाले नाथु ला दर्रे में हुई उस भिड़ंत की कहानी हमारे सैनिकों की जांबाजी की मिसाल है। १४,२०० फीट पर स्थित नाथु ला दर्रा तिब्बत-सिक्किम सीमा पर है, जिससे होकर पुराना गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा व्यापार मार्ग गुजरता है। यूं तो सिक्किम-तिब्बत सीमा निर्धारण स्पष्ट ढंग से किया जा चुका है, पर चीन ने कभी भी सिक्किम को भारत का हिस्सा नहीं माना।

१९६५ के भारत-पाक युद्घ के दौरान चीन ने भारत को नाथु ला एवं जेलेप ला दर्रे खाली करने को कहा। भारत के १७ माउंटेन डिविजन ने जेलेप ला को तो खाली कर दिया, लेकिन नाथु ला पर भारत का आधिपत्य जारी रहा। आज भी जेलेप ला चीन के कब्जे में है। चीन की इन हरकतों को रोकने के लिए १९६७ में नाथुला पास पर तैनात मेजर जनरल सगत राय की अगुवाई में कंटीली बाड़ लगाने का फैसला किया। कंटीली बाड़ को लेकर पहले जुबानी झड़प  हुई इसके बाद चीन ने बाड़ लगा रही भारतीय सेना पर हमला कर दिया। बाड़ लगाने में जुटे इंजीनिरिंग यूनिट समेत भारतीय सेना के ६७ शहीद हो गए।

इसके बाद भारत की ओर से जो जवाबी हमला हुआ उसने चीन का इरादा चकनाचूर कर दिया। सेबू ला एवं कैमल्स बैक से अपनी मजबूत रणनीतिक स्थिति का लाभ उठाते हुए भारत ने जमकर आर्टिलरी पावर का प्रदर्शन किया। कई चीनी बंकर ध्वस्त हो गए और खुद चीनी आकलन के अनुसार भारतीय सैनिकों के हाथों उनके ४०० से अधिक सैनिक मारे गए। भारत की ओर से लगातार तीन दिनों तक दिन-रात फायरिंग जारी रही। चीन को सबक सिखाया जा चुका था।

१४ सितंबर को चीनियों ने धमकी दी कि अगर भारत की ओर से फायरिंग बंद नहीं हुई तो वह हवाई हमला करेगा, तब तक चीन को सबक मिल चुका था और फायरिंग रुक गई। रात में चीनी सैनिक अपने मारे गए साथियों की लाशें उठाकर ले गए और भारत पर सीमा का उल्लंघन करने का आरोप गढ़ा गया। १५ सितंबर को ले. ज. जगजीत अरोरा एवं ले. ज. सैम मानेकशॉ समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में शवों की अदला-बदली हुई। १९६७ की इस लड़ाई में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के लिए नाथुलापास पर अमर जवान स्मारक बनाया गया है। वहीं, पिछले साल चोला पास  पर इस लड़ाई के शहीदों  की याद पर चोला विजय स्मारक  भी बनाया गया है।

दूसरा मामला
१ अक्तूबर १९६७ को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने चाओ ला इलाके में फिर से भारत के सब्र की परीक्षा लेने का दुस्साहस किया, पर वहां मुस्तैद ७/११ गोरखा राइफल्स एवं १० जैक राइफल्स नामक भारतीय बटालियनों ने इस दुस्साहस को नाकाम कर चीन को फिर से सबक सिखाया। यहां भारत और चीन की पोस्ट के बीच की दूरी महज ७०० फुट है। ये दोनों सबक चीन को आज तक सीमा पर गोली बरसाने से रोकते हैं। तब से आज तक एक भी गोली सीमा पर नहीं चली है।

जब अटल जी ने छोड़ा भेड़ों का झुंड
जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो उस दौरान एक चीनी ने शिकायत की कि
बॉर्डर के पास उसके भेड़ों के झुंड में से भेड़ को चुरा लिया है। अटल जी इस शिकायत पर
शांतिपथ में मौजूद चीनी एम्बेसी पर एक भेड़ के बदले भेड़ों का पूरा झुंड छोड़ दिया था।

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