सैन्य सौदों में एजेंट रख सकेंगी विदेशी कंपनियां

नई दिल्ली । रक्षा खरीद में पिछली सरकार की नीतियों में बड़ा फेरबदल करते हुए राजग सरकार ने सैन्य सौदों में विदेशी कंपनियों के एजेंटों के लिए दरवाजे खोलने की तैयारी कर ली है। साथ ही रक्षा मंत्रलय बीते कुछ समय में विभिन्न घोटालों व आरोपों के मद्देनजर काली सूची में डाली गई कंपनियों के मामलों की भी समीक्षा कर रहा है। पाबंदी के बाद टाट्रा ट्रकों के कलपुर्जो की किल्लत के मद्देनजर टाट्रा कंपनी से आंशिक प्रतिबंध हटाते हुए खरीद का गलियारा खोला गया है।

रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने भारतीय सेनाओं की जरूरतों का हवाला देते हुए इन व्यावहारिक बदलावों पर जोर दिया है। रक्षा मंत्री ने प्रस्तावित बदलावों का उल्लेख करते हुए कहा कि विदेशी कंपनियां खरीद सौदों में मदद के लिए तकनीकी प्रतिनिधि रख सकेंगी, लेकिन कंपनियों को न केवल इन प्रतिनिधियों की जानकारी मंत्रलय को देनी होंगी बल्कि शर्त होगी सौदे के लिए ऐसे एजेंटों को किसी तरह का हिस्सा या सक्सेस मनी नहीं दिया जाए।

रक्षा मंत्री ने कहा कि कंपनियों को ऐसे प्रतिनिधियों की फीस का खुलासा भी सौदे से पहले ही करना पड़ेगा। ऐसे मध्यस्थों की भागीदारी के लिए जल्द ही तैयार हो रही रक्षा खरीद नीति डीपीपी-2015 में प्रावधान किए जाएंगे। हालांकि पारदर्शिता बढ़ाने के साथ भ्रष्टाचार के गलियारे बंद करने की कड़ी में रक्षा मंत्रलय इसके लिए केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ भी संपर्क में है।

मीडिया से बातचीत में पर्रिकर ने यह भी जाहिर किया कि सेनाओं के लिए साजो-सामान की जरूरतों के मद्देनजर रक्षा मंत्रलय काली सूची में डाली गई कई विदेशी कंपनियों के मामलों की भी समीक्षा कर रहा है। उन्होंने इस बात के संकेत भी दिए कि कुछ मामलों में शर्तो के साथ प्रतिबंधों में कुछ रियायत दी जा सकती है। इस कड़ी में टाट्रा ट्रक बनाने वाली चेक कंपनी से जरूरी कलपुर्जो की खरीद का रास्ता बनाया गया है। महत्वपूर्ण है कि टाट्रा ट्रक खरीद में रिश्वतखोरी के आरोपों व सीबीआइ जांच के बाद रक्षा मंत्री एके एंटनी के कार्यकाल में ब्रिटेन में पंजीकृत टाट्रा कंपनी पर प्रतिबंध लगा दिया था।

पार्रिकर का कहना है कि अगर किसी कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया गया है तो जरूरी नहीं कि उस कंपनी से जुड़ी और कंपनियों से भी कोई सौदा नहीं किया जाए। साथ ही अगर एक कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया है तो जरूरी नहीं है कि उसकी मुख्य कंपनी पर भी बैन लगा दें। गौरतलब है कि बीते साल वीवीआइपी हेलीकाप्टर सौदे में लगे रिश्वतखोरी आरोपों के बाद इतालवी मूल की ब्रिटिश कंपनी अगस्ता-वेस्टलैड को भी काली सूची में डालने की कवायद चल रही थी। हालांकि इस फैसले से अगस्ता की मूल कंपनी फिनमैकेनिका और उससे चल रहे विभिन्न सौदों के प्रभावित होने को लेकर भी चिंताएं जताई गई थी।

रक्षा मंत्रलय के आंकड़ों के अनुसार, अभी तक कुल 13 कंपनियां हैं जिनको प्रतिबंधित काली सूची में डाला गया है। इनमें से छह कंपनियों को 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट किया गया और बाकी सात कंपनियों पर अनिश्चितकाल के लिए प्रतिबंध है।

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